शौचालय तथा स्नानगृह के लिए वास्तु

शौचालय व स्नानघर वो स्थान है जहां हम अपने दिन की शुरुआत करते है। इस स्थान का उपयोग हम स्वच्छता व शुद्धि के लिए करते हैं। लेकिन क्या आप जानते है कि हमारे घर की अधिकांशतः नकारात्मक ऊर्जा भी यहीं निवास करती है। यदि आपका बाथरूम सही दिशा व स्थान पर ना हो तो ये आपके जीवन में बड़ी परेशानियों का सबब बन सकता है।

सरल वास्तु का उपयोग करके शौचालय या स्नानघर के कारण घर मे रहने वाली नकारात्मक ऊर्जा या दिशा से संबंधित समस्याओं की पहचान करके उसके दोष को दूर किया जा सकता है। सरल वास्तु एकदम आसान तरीकों से बिना किसी टूट-फूट या बड़े बदलाव के घर में सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है।

सरल वस्तु के अनुसार घर मे अटैच्ड (संलग्न) स्नानघर या शौचायल का दरवाज़ा हमेशा बंद रहना चाहिये, शौचालय की सीट सदैव बंद हो, सकारात्मक ऊर्जा के लिए वहां हमेशा पौधे रखे हो साथ ही स्नानघर के कोनों में सेंधा नमक या रॉक साल्ट रखने से भी नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है।

वास्तु के अनुसार शौचालय

पुराने समय मे हमारे पूर्वज घरो के भीतर शौचालय बनाने के विरुद्ध होते थे क्योंकि उनका मानना था की इससे घर मे नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव ज़्यादा होता है। परंतु आज के समय मे घर के अन्दर ही स्नानघर और शौचालय बनने लगे है। हालांकि इसे आज भी वास्तु में इसे नकारात्मक ऊर्जा का केंद्र माना जाता है। इन नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए सरल वास्तु सिद्धांत कई प्रभावी उपाय बताते है।” गुरूजी” का कहना है कि घर मे बनने वाले शौचालय और स्नानघर के लिए वास्तु घर के मुखिया की जन्म-तिथि पर ही आधारित होता है।

 

शौचालय और स्नानघर के लिए 5 अत्यधिक प्रभावी वास्तु टिप्स:
वास्तु के अनुसार शौचालय व स्नानघर के पाँच प्रभावी उपाय:

गुरुजी के सरल वास्तु सिद्धांत पर आधारित:

  • ग्राउंड लेवल की तुलना में टॉयलेट 1-2 फीट ऊंचा हो
  • शौचालय की दीवारों के रंग हल्के हो
  • पूजा कक्ष, अग्नि या शयन कक्ष के ऊपर या नीचे शौचालय की पानी की टंकी न हो
  • घर के केंद्र में शौचालय न हो
  • स्वच्छता कारणों से शौचालय रसोई के पास नही हो

एक स्वस्थ व शांतिपूर्ण जीवन के लिए सरल वास्तु आपके घर में किसी प्रकार की टूट फूट या ढांचीय परिवर्तन (स्ट्रक्चरल) के बिना आपके घर मे बदलाव लाता है। इन परिवर्तनों के द्वारा आप घर में सकारात्मक परिवर्तनों के साथ अपनी जीवनशैली में बिना बदलाव के एक स्वस्थ व सुखी जीवन बिता सकते हैं।

शौचालय और स्नानघर के वास्तु से संबंधित सामान्य मिथक

गुरुजी अपने 19 वर्षों के अथक प्रयासों से सरल वास्तु के अपने सिद्धांतों के द्वारा अनेक लोगों के जीवन मे सकरात्मक बदलाव लाये हैं। गुरुजी का मानना है कि प्रत्येक व्यक्ति पर वास्तु का प्रभाव उसके जन्म-तिथि पर आधारित होता। यह कोई पूर्वनिर्धारित/पहले से तय नियमों का सेट नहीं है जो सभी पर समान लागू हो।

 

” गुरुजी” के अनुसार वास्तु को ले कर निम्नलिखित मिथक जो लोगों में सामान्य हैं :

  • शौचालय की सीट (कमोड) उत्तर दक्षिण दिशा में होनी चाहिए
  • शौचालय पॉट की दिशा पूर्व या पश्चिम के सामने नहीं हो
  • शौचालय जमीन से 2 फीट ऊंचा बनाया जाना चाहिए
  • शौचालय का प्रवेश द्वार पूर्व या उत्तर की दीवार में होना चाहिए
  • पानी के नल पूर्व, उत्तर या उत्तर पूर्व की ओर होने चाहिए
  • दक्षिण पूर्व में शौचालय का निर्माण नहीं होना चाहिए
  • शौचालय कभी भी बाथरूम के दरवाजे के सामने नहीं आना चाहिए