वास्तु अच्छी तंदुरूस्ती के लिए प्रोत्साहित करता है, यह हमारे भाग्य के साथ विरोध नहीं करता । यह दृढ़ विश्वास है कि, वास्तु एक संरचना का शास्र है जो समृध्दि का वचन देता है । साथ ही अगर वास्तु शास्र का पूर्ण रूप से पालन नहीं किया गया तो क्या इसमें ऐसी कुछ विशेष सुविधा हो सकती हैं ? विशेष रूप से हम में से अधिकतर लोग एक सुंदर जीवन शैली जीते हैं और ज्यादातर वास्तु सिध्दांतो का उपयोग किए बिना ही वास्तुशिल्पीय संरचनाओं का निर्माण किया जाता है । इसके अलावा, निर्माण के नियमों को गौर से देखना तथा उनका अनुसरण किया जाना चाहिए । इस प्रकार से आदर्श वास्तु अनुरूप मिलने की वस्तुतः संभावना नहीं है । हालाँकि, क्या हम कुछ समझौते कर सकते हैं ? जरूर हां ।
वास्तव में, अगर हम बाह्य स्वरूप में बदल करने में असमर्थ हैं तो हमें अतिसूक्ष्म स्तर पर ध्यान देना चाहिए । इससे यह सूचित होता है कि, आप आंतरिक भाग पर ध्यान देना शुरू करें । वास्तु शास्र के सिध्दांतों की तुलना में कुछ मार्गदर्शक अत्यंत महत्त्वपूर्ण हो जाते है । यह सब नकारात्मक घटकों के प्रभाव को रोककर संतुलन निर्माण करने के बारे में है ।
वास्तु वास्तव में कोई धर्म नहीं है । यह वास्तव एक शास्र है जिसमें चीजों को योग्य तरीके से स्थापित करके यह सुनिश्चत करता है कि पाँच तत्त्वों में से हर एक तत्त्व संतुलन में है । अगर यह बात है तो यह जीवन में हर संभव उच्चतम लाभ उत्पन्न करता है । अगर घर, मकान तथा कार्यालय इसमें से किसी एक का भी उल्लंघन कर रहा है तो उसे वास्तु दोष कहा जाता है ।
आम तौर पर वास्तु दोषों ( अभाव ) में सुधार लाने के लिए कमरो में परिवर्तन करके, कमरे के अंतर्भाग में विशेष बदलाव से तथा कमरे में स्थित वस्तुओं को नियंत्रक तथा ऊर्जा से सक्रिय की हुई वस्तुओं का उपयोग करके उन्हें फिर से सजाया ( उनकी जगहों को बदलकर ) जाता है । लगभग हर वास्तु दोष ( अभाव ) के लिए अगर पर्याप्त रूप से उसका अनुसरण किया गया तो निश्चित वास्तु उपाय होता है जिससे संभवतः शांति तथा समृध्दि प्राप्त हो सकती है । वास्तु दोष ( त्रुटि ) जो इस समय व्यक्ति के आवासीय या व्यावसायिक मालमत्ता में हो सकते हैं उनका पूर्ण रूप से नाश करने के लिए ऐसे कुछ उपाय हैं ।