१३. उत्तरी-पूर्व दिशा का वैज्ञानिक विश्लेषण

भारतीय प्राचीन ग्रंथ वास्तु शास्त्र के अनुसार यदि हम घर को बनवाते समय या उसमे सामान व्यवस्थित करते समय यदि वास्तु के नियमों का समावेश करे तो सकारात्मक ऊर्जा को आकषृ कर घर परिवार के सदस्यों को और भी अधिक ऊर्जावान और सेहतमंद बनाया जा सकता है। वास्तु अनुसार ऐसा कहा जाता है कि चूँकि उत्तर-पूर्व दिशा एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण दिशा होती हैं, आजकल के वास्तु विद्वानों के साथ-साथ वास्तु सम्बंधित पुस्तक लिखनेवालों की तरफ से, जिनका यह पक्के तौर पर कहना है कि, किसी भी प्रकार के ‘भारी-भरकम सामान’ को इस खास दिशा ‘उत्तर-पूर्व’ में नही लगाना चाहिए, क्योंकि इससे संपूर्ण परिवार को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।

ऐसा करने पर अब एक मूलभूत प्रश्न यह उठता हैं कि, ‘क्यों नहीं इस दिशा में हम भारीभरकम भारवाली वस्तुओं को लगा सकते हैं!’ वास्तु-विशेषज्ञों व विद्वानों ने अपने विचार प्रकट करते हुए यह

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कहा हैं कि चूँकि ‘वास्तु-पुरुष’ का सिर इस खास दिशा में ही होता है।इसलिए किसी भी प्रकार का भार का इस दिशा में होना, वास्तु-पुरुष के सिर पर काफी अधिक मात्रा में ‘भार’ डालने के बराबर हैं, जिसके फलस्वरुप, ‘वास्तु-पुरुष’ का नाराज़ होना या उसके गुस्से को बढ़ाना हैं, जिसके फलस्वरुप, विभिन्न प्रकार की पारिवारिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता हैं एवं परिवार में बिना किसी कारण से निरर्थक कलह व भेदभाव उत्पन्न हो सकता हैं।

चूँकि हम सभी पढ़े-लिखें व्यक्ति हैं तथा हम सभी चीज़ों के बारे में अच्छी व बेहतर राय सुनकर अपने विचार बनाते हैं, इसके बावजूद भी कोई बेवकूफ व्यक्ति अपने परिवार तथा स्वयं अपने उढपर मुसीबतों को आमंत्रित कर सकता हैं। इस तथ्य को मैं एक उपयुक्त उदाहरण के द्वारा साबित कर सकता हूँ जो आप सबको, सोचने समझने के लिए भी बाध्य करेगा।

हुबली शहर (कर्नाटक राज्य) के एक अत्यंत प्रतिष्ठित सिनेमा-थियेटर हॉल के मालिक ने मुझे अपने घर में कुछ वर्ष पहले अपने घर के लिए ‘सरल वास्तु’ संबंधित सलाह प्राप्त करने के उद्देश्य से आमंत्रित किया था। जन्म-तिथि के हिसाब से, मैंने उनके घर के लिए कुछ हल्के-फुल्के परिवर्तनों को, उनके घर में लागू करवाने के लिए सरल वास्तु उपायों की सेवाएं लेने का सुझाव दिया। इनके घर में, एक सीढी उत्तर-पूर्व दिशा में स्थित थी जोकि किसी भी परिस्थिति में व किसी भी प्रकार से कोई भी कठिनाई या मुसीबत देनेवाली नही थी।

लेकिन उन्हें किसी ‘वास्तु विशेषज्ञ’ द्वारा यह सलाह दी गई कि, यदि शीघ्र ही वास्तु-दोषों से परिपूर्ण उस पुरानी सीढ़ी को अपने वर्तमान स्थान से हटाकर नही निकलवाया गया तो शीघ्र ही परिवार के उढपर इसका प्रतिकूल असर पडेगा, क्योंकि इस सीढ़ी का होना वास्तु के हिसाब से बिल्कुल भी उपयुक्त नही हैं। जबकि मुझे अहसास हुआ कि वर्तमान सीढ़ी की स्थिति में किसी भी प्रकार के परिवर्तन या तोड़-फोड़ की कोई आवश्यकता ही नहीं हमारे बीच इस प्रकार एक वार्तालाप चल ही रहा था कि उस परिवार की सबसे बुर्जुग महिला ने हमारी आपसी चर्चा के बीच अपनी बात कहनी चाही। वह बुर्जुग महिला वास्तव में उस सिनेमा मालिक की मॉँ थी।

उन्होने मेरी बातें सुनी और इस बात का भी खुलासा किया कि, इस घर को उनके पति अथृ् थियेटर मालिक के पिता द्वारा ४० वर्ष पहले, बड़े जतन से बनवाया गया था। इस बात से वह बहुत दुखी एवं परेशान थी कि उस सीढी-शृंखला को उस तथाकथित वास्तु पंडित के कहने पर ही उनका बेटा तुड़वाकर हटवाने को तैयार हो चुका था। यहाँ आश्चर्य कर देनेवाली बात यह थी कि उनका बेटा स्वयं जो एक निपुण सिविल इंजीनियर तथा उस थियेटर का मालिक था, वह कैसे किसी की बात में आ सकता है।

यह सब सुनकर, मैंने उन माताजी के पुत्र को, सिर्फ वास्तु के वैज्ञानिक-सिद्धान्तें के उढपर भरोसा करने की सलाह दी तथा इन सब तथ्यों के उढपर भरोसा न करके, सरल वास्तु के पूणृः वैज्ञानिक सिद्धान्तों पर आधारित सरल वास्तु उपायों को अपनाने के लिए कहा, जो किसी भी प्रकार की अंधविश्वासों के सिद्धान्तों पर भरोसा करती ही नही है।

मेरे विचारों की शृंखला को आगे बढ़ाते हुए मैंने उस यजमान से निम्नलिखित प्रश्नों का क्रम शुरु किया, जिससे कि उनसे मैं एक जरुरी व तर्कसंगत जवाब लेने के साथ-साथ, उन्हें सरल वास्तु के द्वारा संतुष्टि प्रदान करने लायक जवाब दे सपूँ। इस क्रम में, मैंने उनसे पहला प्रश्न पूछा, ‘आपके पिताजी द्वारा निमृ कितने सिनेमा-थियेटर हैं?’ उनका जवाब था, ‘सिर्फ एक’। फिर मैंने सहजतापूर्ण तरीके से दूसरा प्रश्न किया, ‘अभी आपके पास, आपके द्वारा बनवायें गए कितने सिनेमा-थियेटर हैं?’ उनका जवाब था, ‘नौ’। मैंने उनको समझाया कि उनके पिताजी खुद के सिनेमा-थियेटर को कब का बेच चुके होते, यदि उनके थियेटर के उत्तर-पूवी कोने में, किसी भी प्रकार का भारी-भरकम भारवाली कोई चीज़ होती या किसी भी प्रकार का भारी-भरकम निर्माण होता, जैसा कि उनके पहलेवाला ‘वास्तुतज्ञ’ उन्हें सलाह दे चुका था, और अगर ऐसा ही कुछ उस ‘वास्तुतज्ञ’ के कहे अनुसार सच साबित होता, तो दुष्परिणाम या इसके बदतर परिणाम के खातिर आज उनके पुत्र के द्वारा, ‘नौ-नौ’ सिनेमा-थियेटर को कभी भी, वर्तमान परिस्थितियें में होना बिल्कुल न के बराबर ही होता था।

मेरे इतना कहते ही, वह सिनेमा-मालिक एकदम से शान्त हो गया, उन्होंने ध्यान से सोचविचार किया तथा मेरे विचारों की तर्कसंगता, प्रासंगिकता व उपायोगिता को समझा तथा उसे स्वीकार कर, उस पुराने वास्तु विशेष़ज्ञ के दिए गए सुझाव व विचारों को छोड़कर, मेरे द्वारा दिए गए साधारण सरल वास्तु के पूर्णत: वैज्ञानिक उपायों को तुरंत उसी वक्त, सहर्ष स्वीकार किया, जिससे कि उनकी ज़िंदगी की समस्त समस्याओं का खात्मा एवं समस्त वास्तु-दोषों से छुटकारा पाया जा सके।

सरल वास्तु यह भी विश्वास करता है कि घर के बीचों-बीच अगर किसी ‘सीढ़ी-शृंखला’ को बनवाई जाए, तो उस सीढ़ी द्वारा घर के अंदर आनेवाली सकारात्मक ऊर्जा का मार्ग अवरुद्ध हो जाएगा, जिससे वहाँ रहने वाले हर एक सदस्य के जीवन में समस्यायें ही समस्यायें नजर आयेंगी इसलिए सलाह यही होगी कि घर के बीचें-बीच, सीढ़ी के निर्माण को किसी भी कीमत पर हटाना होगा, मेरा खुद का विचार यह हैं कि सिर्फ घर के बीचें-बीच वाले भाग को छोड़कर, उच्चभारवाले निर्माण या चीजों को किसी भी दिशा में बनवाया जा सकता हैं, जिससे किसी भी प्रकार की समस्या के होने का कोई अवसर ही नही मिलेगा।

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