आती है तब वह विवाह विलंबित होने का कारण बन सकती है, जिससे, वधू(कन्या)के माता-पिता और उनके सगे-संबंधियों को चिंतित कर देते है । यह बात वर के लिए भी उतनी ही चिंताजनक बात है । यह स्वभाविक बात है कि, विवाह का प्रस्ताव, इच्छित विवाह के गठबंधन के अनुरुप न होने की वजह से, विवाह सुनिश्चित करने में उद्भावित समस्याओं की वजह से विवाह के गठबंधन में शामिल दोनों, भागीदारों के सगे–संबंधियों और परिचितों में अशांति का माहौल खड़ा होता है । इसके आगे, यदि घर में, संबंध के स्थान या दिशा संबंधित समस्या हो, तब विवाह के मामले में वह अनावश्यक तौर से विलंबित होने की संभावना रहती है। ऐसी असंख्य समस्याएं विवाह के गठबंधन को अंतिम चरण में भी तोड़ने के लिए कारण बन सकती है। ऐसी असामान्य परिस्थितियों के तहत, वर और वधू के बीच में विवाह का गठबंधन न हो पाने या सम्मिलित परिवारों के बीच में तनावपूर्ण संबंधों के विषय मैं किसी भी प्रकार सही जा रही समस्याओं के लिए सिर्फ और सिर्फ सरल वास्तु ही यथार्थ और तार्किक समाधानों को प्रदान कर सकता है । यहॉ, इस विषय पर मैं शधिक स्पष्टीकरण करने के लिए उदाहरण देना चाहता हुं । एक बार ऐसी घटना घटना बनी कि, हमारे सरल वास्तुतज्ञ, कर्नाटक में संखेश्वर नगर के नजदीक स्थित घर में एक वृद्ध व्यक्ति, जोकि उम्र और महत्ता दोनों में बड़े थे, उनके घर की मुलाकात लेने गये । परिवार के मुखिया ने सरल वास्तु तज्ञ को उनके घर में स्वागत किया । जब हमारे सरल वास्तु तज्ञ ने घर में प्रवेश किया तब वह उनके घर में संबंध या स्थल से जुड़ी हुई समस्या खोजने के लिए सक्षम थे । जो उनके रिश्तेदारों और उनके संबंधियों के बीच में पूर्ण संबंध से संबंधित समस्याओं का कारण था । सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि, परिवार के सभी सदस्यों के द्वारा किये गये अनेक प्रयासों के बावजूद घर में रहती विवाहयोय कन्या का विवाह संपन्न नही हुआ था। वह संभवित वरों (दूल्हों)और उनके परिवारों के सामने वधू को देखने के लिए कई बार प्रस्तुत करे थे ।
किंतु अफसोस, किसी भी मुलाकात को सफलता नही मिलती थी । जब वास्तु तज्ञों ने, विवाहयोग्य कन्या की जन्मतिथि की जांच द्वारा इसका विशिष्ट कारण खोजने चाहे, तब वह एक अंतिम निष्कर्ष पर पहुंचे कि, खासकरके, कन्या की शादी होने के लिए उत्तर और पश्चिम दिशायें संपूर्ण रुप से वधू (कन्या) के लिए अशुभ थी।
वधू (कन्या) को भी ऐसी सूचना दी गई कि, सोते समय वह उसकी शुभ दिशा में सोये और इसके साथ–साथ सरल वास्तु सलाह का अनुसरण करने के लिए कहा गया । बहुत ही महत्वपूर्ण रुप से, ऐसी सूचना दी गई कि, जब वर (दुल्हा) उसके परिवार के सदस्यों के साथ देखने आये तब उसे यथार्थरुप से अपना चेहरा पश्चिम दिशा की ओर रखना चाहिये, क्योकि वह उसकी बहुत ही शुभ दिशा है। इसके अलावा, परिवार के सदस्यों को ऐसा आयोजन करने की सलाह दी गई कि, जब भी अगली बार संभवित वर देखने के लिए आये तब संभवित वधू (कन्या) उसकी शुभ दिशा पश्चिम की ओर मुह रखकर ही बैठे ।उनकी ऐसी सलाह देने के बहुत ही कम समयावधि में ही योग्य कन्या के लिए विवाहयोग्य अनुकूल गठबंध्न पक्का हो गया ।
किंतु इस प्रकार के सलाहों के संदर्भ में घर के मुखिया ने वास्तुतज्ञों के सामने एक बहुत ही उचित सवाल रखा : महोदय, वर–निरीक्षण के समय, हमारी वर्षो से चले आते हमारे रिवाज और परम्परा में क्यों वधू को उत्तर दिशा की ओर मुह रखकर बैठने का रिवाज बनाया गया है । यदि हम इस परम्परा का त्याग करके विवाहयोग्य कन्या को पश्चिम दिशा की ओर मुह रखकर बिठायेंगे तो हम लोग जो समस्याएं आज भुगत रहे है, उससे कही अधिक समस्याएं तो खड़ी नही होगी ? कल्याण हेतु विवाह स्वीकृत हो जाने की बजाय कोई बड़ी विपत्ति तो नही आयेगी ना ?
इसके बारे में, मेरे पास एक योग्य उत्तर था । मैंने उत्तर दिया, आपकी बेटी का विवाह संपन्न कराने हेतु हमारी संस्था में से सरल वास्तुतज्ञ आपके पास आये । उनको आपने ही आपकी बेटी के बारे में कहा था कि, लंबे समय से उसका विवाह संपन्न नही हो रहा । मैं आपको कह रहा हु कि, वह किसी भी प्रकार से आपकी बेटी का ब्याह कराके ही रहेंगे ।
जब मैंने यह बात साफ–साफ शब्दों नें कही तो वधू (कन्या ) के पिता सहमत हुए और कन्या के पिता ने हमारे द्वारा दी गई सूचनाओं के अनुसार विवाह करने के लिए उन्होंने अपनी बेटी को दिशा बदलने की जरुरत के बारे में राजी कर लिया । फिर जब वधू निरीक्षण का प्रस्ताव आया, तब उन्होंने स्वयं ही यह तय कर लिया कन्या पश्चिम दिशा की ओर मुह रखकर बैठेगी । दो प्रस्ताव त्वरित क्रम में आये । तीसरा प्रस्ताव जब आया तब वर–वधू एक–दूसरे को पसंद आये और संबंधित वधू के साथ विवाह के गठबंधन ने हकिकत का रुप लिया । वर वधू ने एक–दूसरे को पसंद किया और इसके साथ–साथ उनके माता–पिताओं के बीच भी सौहार्दपूर्ण माहौल बना । मुझे यह बात कहते हुए बहुत ही गर्व की अनुभूति होती है कि, परिवार में विवाह खुशी–खुशी संपन्न हुए और लड़की आज उसके पति के साथ युनाईटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका में रहती है।
मैं आपको और एक उदाहरण बताना चाहता हूं। हमारे एक विशेषज्ञ ने मुंबई शहर के मुलुंड के एक घर में गये थे, उन्होंने देखा कि, घर का दक्षिण–पश्चिम भाग संपूर्ण रुप से अनुपस्थित है । सरल वास्तु अनुसार दक्षिण–पश्चिम भाग विवाह और संबंधों का प्रतिनिधित्व करता है । हमारे वास्तुतज्ञ द्वारा ऐसा कहे जाने पर घर का मालिक एकदम मौन हो गया और आश्चर्य हो गया और तत्पश्चात उन्होंने सरलता से कबूल किया और कहा कि, वह उसके पुत्र के विवाह की समस्या का सामना कर रहा था । घर में उपलब्ध सरंचना से संबंधित दोषों को दूर करने और उसे लागू करने के लिए, बदलाव के लिए उसकी आवश्यकता अनुसार, सरल वास्तु समाधान प्रदान किये गये । तीन महीने की छोटी अवधि में उनके बेटे के विवाह की समस्या का आसानी से अंत हो गया और उनके सभी रिश्तेदारों और व्यापारिक भागीदारों के साथ संबंधों में चमत्कारिक रुप से सुधार हुआ और वह हरएक के साथ उत्तम संबंध बनाये रखते है ।
ऐसे बहुत सारे प्रसंगों या मेरे निजी जीवन के अनुभवों का वर्णन मैं आपके सामने कर सकता हुं, जिसमें, सरल वास्तु सिद्धांतों और समाधानों के आशीवार्द द्वारा हजारों महिलाओं ने उनके दर्दभरे आंसू उनके भाग्य में से हमेशा के लिए दूर कर दिए है । उनके दिल ने महसूस कि हुई कृतज्ञता और आभार की भावना हमारे उपर उनके अगणित, हार्दिक आशिर्वाद और आभार की भावना द्वारा वर्षा की जा रही है । हमारी संस्था और हमारे सरल वास्तुतज्ञो के लिए उनके आशिर्वाद और शुभेच्छाओं ने हमें अधिक प्रोत्साहन दिया है।सरल वास्तु के कार्यो द्वारा विश्व में सम्रग मानवजाति के लिए अधिक अच्छे कार्यो को करने के लिए हमारें विचारों को नयी ऊर्जा से भर दिये है । इसके फलस्वरुप, हम ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को समृध्द और संस्कारी बना सके,ज़िसकी, धन या चाहे कितनी भी बड़ी राशि से भुगतान नही हो सकता । अनंतोगत्वा, सरल वास्तु से हम सभी की यह सच्ची और सौम्य इच्छा है ।