२८. सरल वास्तु के सिद्धांतों के अनुसार, प्रकाश का पर्व दीपावली का उत्सव

भारतवर्ष में त्यौहारों को मनाना हमारी भारतीय संस्कृति और सभ्यता का महत्त्वपूर्ण हिस्सा रहा है । हमारी भव्य धरोहरों को और प्रवाहित रखने में ऐसे त्यौहारों ने बहुत ब़ड़ी भूमिका निभाई है। परिणामस्वरुप, हमारा वर्तमान जीवन प्रमोद, मौज, हास्य और उत्सव द्वारा त्यौहारों के मिजाज के साथ हम बिताते है । भारत में दो महत्त्वपूर्ण त्यौहार है जिनमे से एक वर्ष के प्रारंभ में आता है और दूसरा वर्ष के अंत मे आता है, तो क्रमानुसार होली और दीपावली है। दशहरा, उन दोनों के बीच मुख्य त्रोत के स्वरुप में आता है, नौ दिनों के त्यौहार में हम अपनी कृतज्ञता अभिव्यक्त करने के लिए उपवास एरां हमारे द्वारा हुए पाप के लिए तपश्चाप करते है । किंतु, होली और दीपावली में हम भरपेट आहार ग्रहण करते है और किसी भी प्रकार के उपवास या तपश्चाप किये बगैर खुश रहते है ।

भारत के उत्सव, हमेशा किसी न किसी धार्मिक संलग्नता या धार्मिक अनुष्ठानों के उत्सवों से साथ जुड़े हुए है । हरएक त्यौहार,विशिष्ट धार्मिक प्रयोजन से युक्त होता है, जैसे कि, होली की भक्ति, भगवान विष्णु और उनके नरसिंह अवतार की पूजा के प्रति भक्त प्रहलाद के समर्पण को दर्शाया है, नरसिंह अवतार ने दुष्ट और क्रूर हिरण्यकश्यप का वध किया था, जो प्रहलाद को मार डालने चाहता था । उसकी भगवान विष्णु के प्रति पूजा और समर्पण की वजह से । हालांकि, ऐसी अन्य विविधप्रकार की कहानियां है, जैसे श्रीकृष्ण और उनकी प्रेमिका राधा के बीच के शास्वत प्रेम तथा श्रीकृष्ण वृन्दावन के किस प्रकार गोकुल में उनके घर होली खेलने जाते थे, इसके बारे में वर्णन है। होली को रंगों का त्यौहार भी कहा जाता है, जिसमें, बिना किसी प्रकार के भेदभाव से हम लोग रंगीन पानी और रंगों को एक–दूसरे पर फेंकते है। उसी प्रकार, दशहरे का त्यौहार, कल्याणकारी शक्तियों का अनिष्ट शक्तियों पर के विजय को सूचित करता है और अंत में, भगवान राम ने सीता को रावण की कैद में से छुड़ाने के लिए राक्षस रावण को हराया । नवरात्री जिसमें भक्त मॉ दुर्गा देवी की प्रार्थना करते है, जिसे दुर्गा पूजा भी कहा जाता है, उनके नौ दिनों की तपश्चात और उपवास पूर्ण होने के दूसरे दिन राक्षस राजा रावण के पुतले का दहन किया जाता है । उन दिन को हम लोग दशहरा या विजयादशमी कहते है ।

अब बहुत ही महत्त्वपूर्ण और अंतिम त्यौहार, दीपावली, संपूर्ण भारत में इस त्यौहार को किसी भी प्रकार के वर्ग, जाति, समुदाय, उप–जाति या किसी अन्य प्रकार के समाजिक स्तरीकरण के भेदभाव के बगैर सभी समुदायों द्वारा मनाया जाता है । व्यापारियों के लिए यह त्यौहार बहुत ही महत्त्वपूर्ण होता है, जिसमें व्यापार के नये वित्तीय वर्ष का प्रारंभ होता है, जिसके लिए उन्हें नयी बहीखाताएं बनाकर उसकी शुरुवात करनी होती है और पुराने खातों को निपटाना है, ताकि कोई ऋण बाकी न रहे । बड़ी दीपावली खासकरके लक्ष्मी–पूजन और गणेश–पूजन इस त्यौहार के बहुत ही महत्त्वपूर्ण पहलु हैं।परिवार के सभी सदस्य साथ मिलकर आरती करते है और भगवान गणेश की प्रार्थना करते है। उसके पहले के दिन को छोटी दीपावली या नरक चतुर्दशी के तौर पर मनाया जाता है । इस समय हम लोग हमारे घरों में से आसुरी या अलक्ष्मी तत्त्वों को दूर करने के लिए १४ दिपक और मोमत्तियां प्रज्वलित करते है । छोटी दीपावली के एक दिन पहले हम धनतेरस त्यौहार को मनाते है, जिसमें हम, हमारी क्षमता अनुसार कम से कम एक बर्तन या एक आभूषण खरीदते हैं। त्यौहार के अंत में भाईदूज का त्यौहार होता है, इस त्यौहार में, भाई उनकी बहनों के घर जाते है और उनके संबंधित भाईयों, बहनों के प्रति प्रेम और समर्पण की भावना दशाने के लिए तिलक करवाते है ।

बड़ी दीपावली के दिन हम हमारे घरों और आँगन में दीये और मोमबत्तियां, इलेक्ट्रिक बल्ब या वार्यस या कोईल्स पर एल.सी. डी बल्ब लगाते है, परिणामस्वरुप, हमारे घर जगमगा उठते हैं और त्यौहारों के शुरु होने से पहले हम अवश्यरुप से अपने घरों को स्वच्छ करते हैं। संर्पूण वर्ष मे संचय हुए कचरे को बाहर निकालते हैं और हमारे घरों में पेंट करवाते हैं या चूने से रंगते हैं। हम लोग हमारे परिवार के सभी सदस्यों के लिए नये वस्त्र भी खरीदते है और हमारे पडौसियों और परिचितों के साथ मिठाईयां और नमकीन का आदान–प्रदान करते है, हम लोग पटाखें, मिठाईयां स्वादिष्ट व्यजनों के साथ त्यौहार को मनाते हैं और एक–दूसरे को नये उपहर देते है । संक्षिप्त में, यही दीवावली के उत्सव का मूल्य और सारतत्व है । दीपावली, प्रकाश, नये वस्त्रों, नई आशाएं और नई आकांक्षाओं का त्यौहार है ।

सरल वास्तु संकल्पनाओं अनुसार, इसका वैज्ञानिक दृष्टिकोण यह है कि, प्रकाश के इस पर्व को महत्त्व देने कि वजह से सरल वास्तु ने इस त्यौहार को मनाने की प्रक्रिया के साथ विशिष्ट संबंध प्राप्त किया है । जैसा कि, ऊपर वर्णन किया गया कि, हम लोग दीपावली के धार्मिक क्रिया के रुप में घरों की सफाई करते है और जंजाल तथा या अनिच्छनीय अशांति और घर में बेकार पड़ी हुई अनुपयोगी और बेकार सामग्रियों को बाहर फेंक देते है । पुरानी चीजें, पुराने अखबारों, अनुपयोगी या बेकार वस्तुओं के नष्ट करने से हम लोग सकारात्मक ऊर्जा के साथ आसपास के वायुमंडल को भी स्वच्छ करते है और हमारे वायुमंडल को नई पुन:संचारित सकारात्मक ऊर्जा स्त्रोतों से भर देते है, इस प्रकार, हरएक नकारात्मक ऊर्जा के स्त्राsत या पिछले वर्ष या उसके पहले की बेकार पुरानी चीजों से पिछा छुड़ाते है । पुरानी चीजों को नष्ट करते समय हमारे घर में नकारात्मक ऊर्जा एकत्रित न होने देने के विषय में हमें बहुत ही सावधानी बरतनी चाहिए । फलस्वरुप, मन में उपस्थित सभी नकारात्मक विचारों को भी निकाल दीजिए । पुरानी बेकार वस्तुओं, अनावश्यक बातों कि तरह पुरानी चीजों से संबंधित अनावश्यक विचारों और चिंताओं को सदा के लिए बाहर निकाल दिजिए । हमारे अपने और परिवार के सदस्यों के मन पर अच्छा प्रभाव स्थापित करें । यदि हम पुराने नकारात्मक विचारों को संजोये रखने की प्रक्रिया चालू रखेंगे और उसे हमारी विचार प्रक्रिया में पोषण देते रहेंगे तोऐसे विचार, हमारे जीवन में किसी भी प्रकार का सकारात्मक लाभ प्राप्त नही करने देंगे ।

हमारे पूर्वज भी सकारात्मक ऊर्जा और नकारात्मक ऊर्जा की संकल्पना से अवगत थे । सकारात्मक ऊर्जा में वह लक्ष्मी को संबोधित करते थे और नकारात्मक ऊर्जा का उल्लेख वह नजर या बूरी पनौती के रुप में करते थे । दीपावली की रात्रि के अंधकार को अमावस्या या अमावस कहा जाता है, तो नकारात्मक ऊर्जा का सूचन करता है और इलेक्ट्रिक बल्ब, एल.सी.डी बल्ब, मोमबत्तियां, मिट्टी के दीये, पटाखों के जगमगाहट से संपूर्ण वायुमंडल प्रकाशमान किया जाता है, जो अधिक से अधिक सकारात्मक को अमांत्रित करता षै, जो दीपावली पर्व के दिन पर सदा के लिए हमारे घरों में से अंधकारमय रात्रि की नकारात्मक ऊर्जा दूर करता है । हम, पूजा-घर के दरवाजे–खिडकियों खुले रहते है, ताकि, देवी लक्ष्मी, हमारे घर में खुशी–खुशी प्रवेश कर सकते और अंधकार दूर हो, इसके अलावा, लक्ष्मीजी के लिए योग्य सकारात्मक वायुमंडल का सर्जन करना चाहिए, जिससे वह सदा के लिए हमारे घर में निवास करें । यह एक बहुत ही प्रचलित मान्यता है, जिन्हें भारत के ज्यादातर लोग मानते है, दीपावली के दौरान, घर को ज्यादा से ज्यादा प्रकाशित रखने का आग्रह रखा जाता है, जिससे वायुमांडल में प्रवाहित होती सकारात्मक ऊर्जा, हमारे घर में अवश्य प्रवेश करेगी ।सकारात्मक ऊर्जा से हमारे घरों को भर देने से हमारी विचार–प्रक्रिया भी सकारात्मक हो जाती है, हमारी पैसा कमाने की क्षमता में सुधार होगा, हम, सकारात्मक प्रकार से कार्य करने के लिए प्रेरित होंगे । जिस तरह, प्रकाश बलपूर्वक अंधकार को दूर कर देता है, उसी प्रकार, सरल वास्तु भी, भ्रमित अंधकार में से लोगों के जीवन और मन को प्रकाश से भर देता है। इस भ्रमित अंधकार का सर्जन, वर्तमान कार्य करनेवाले, तथाकथित पाखंडी वास्तु पंडितों और अनैतिक वास्तु विशेषज्ञों, विद्दमानों, दृष्ट लोगों द्वारा किया गया है, जिनका काम लोगों को मूर्ख बनाना होता है । इस प्रकार के पाखंडी वास्तु विशेषज्ञ हकिकत में, सच्चे वास्तु विशेषज्ञों द्वारा किये गये शुभ कार्यो को गलत ठहराते है । जैसे कि, हमारे आसपास सरल वास्तु है, चह आपसे हमेशा वास्तविक भविष्यवाणियां करेंगे और सरल वास्तु के आसान, वैज्ञानिक और समजने में सरल समाधानों द्वारा आपके वास्तु दोषों का समाधान कैसे लाया जा सकता है वह समजायेंगे ।

हमारे आसपास उपस्थित अंधकार को दूर करना या सभी नकारात्मक ऊर्जा स्त्रोतों को हराना, परिणामस्वरुप, इसी प्रकार से हमारे जीवन को प्रकाशित करने के लिए सभी सकारात्मक स्त्रोतों को पुन:स्थापित करना, इसी प्रकार से, कई वर्षो से बेईमान, विशेषज्ञों और वास्तु किताबों की वजह से लोगों के मन में आरुढ हुए बूरे काल्पनिक ज्ञान को दूर करके सरल वास्तु समग्र मानवजाति की सेवा करता है । सरल वास्तु सिद्धांतों द्वारा दिए गए गुफा के अंत में प्रकाश जैसे बुद्धिमात्तायुक्त शब्दों अनुसार, उनके कार्यो का सर्जन किया गया है । यह पूर्णरुप से स्पष्ट है कि, सरल वास्तु और हमारी संस्था का मुख्य उद्देश्य, प्राचीन वास्तु सिद्धांतों के सच्चे अर्थघटन द्वारा सभी लोगों के जीवन को प्रकाशित और सुखी–संपन्न करने का है, इसके फलस्वरुप, लोग हमारे प्रचीन वास्तु सिद्धांतों और परंम्पराओं का सच्चा मूल्य करने महत्त्व समज सके । जिससे हम हमारे प्राचीन वास्तु धरोहर पर गर्व का अनुभव कर सके और अंत में लोगों में नवजागृति का सर्जन कर सके । परिणामस्वरुप,वह किसी भी प्रकाश की शंका के बगैर या मनोबलपूर्वक खुले हद्य से सरल वास्तु सिद्धांतों का स्वीकार कर सके । मैं समस्या से मुक्त विश्व की कल्पना करता हू, विश्व सुखी लोगों से भरा हो, जिससे लोग उनके जीवन के लक्ष्यों और जिम्मेदारियों के अंत तक सकारात्मक रुप से प्राप्त करें, उनका जीवन शास्वत सुख, शांति और संपन्नता से छा जाये,उनकी जिंदगी से कभी भी न जाए क्योकि उल्लास और संतोष का आधिपत्य सरल वास्तु के साथ है ।

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