शरीर में फैले हुए ७ चक्र ऊर्जा के स्रोत हैं। संस्कृत शब्द चक्र का मतलब है चक्का और इसे ऊर्जा का घुमता हुआ चरखा के रूप में सोचा जा सकता है। यह ऊर्जा का विद्युतगृह है जिससे व्यक्तियों को कार्य करने के लिए बाध्य करता है। मुख्य और छोटे उर्जा केंद्र शरीर के विभिन्न भागों में स्थित हैं और जीवन के भिन्न-भिन्न शारीरिक, भावनिक तथा आध्यात्मिक पहलुओं को परिभाषित करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि भौतिक और आध्यात्मिक शरीर के बीच में चक्र एक कड़ी है। अगर ऊर्जा का प्रवाह में बाधा है तो, परिणामस्वरूप शारीरिक तथा भावनात्मक कठिनाईयाँ आती है।
७ चक्र अदृश्य सूक्ष्म ऊर्जा स्थल हैं जो शरीर के अंदर की ऊर्जा का ब्रम्हांडीय ऊर्जा के साथ एक ही समय में तालमेल होने के बाद प्रभारित हो जाते हैं। वास्तु शास्र के सिध्दांत इन्ही तत्त्वों पर आधारित हैं। यह हमारे आसपास की ऊर्जा को बढ़ाते हैं और सकारात्मकता के साथ हमें भरता है। इसका हमारे शरीरस्वास्थ्य, संपत्ती, आध्यात्म और संपूर्ण तंदुरूस्ती पर दीर्घकालिक लाभ होता है।
वास्तु शास्र के अनुसार और लोगों के आसपास सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाने के लिए पास-पड़ोस के परिवेश के साथ तालमेल मिलाने की विशेषज्ञता सरल वास्तु को हासिल है। आपके घर का उचित योजना पहचानने में, विशेष रूप से कमरों में रंग लगाने में तथा अलग-अलग कमरों में उपयुक्त सजावट करने इत्यादी में सरल वास्तु आपको मदद कर सकते हैं। इन सभी पहलुओं से शरीर के ७ चक्र खुल जाएँगे और परिणामस्वरूप परिवार में सकारात्मकता तथा शांती आएगी।
सात चक्र संतुलित करके संपूर्ण तंदुरूस्ती लाने के लिए सरल वास्तु कई तरीके अपनाते हैं। उनमें से कुछ तरीकों का नीचे उल्लेख है –
- मूलाधार या रूट (मूल) चक्र –
मूलाधार चक्र मेरूदंड के तल में स्थित होता है और पृथ्वी के करीब होता है। घर में भौतिक ऊर्जा को बढ़ाने हेतु सरल वास्तु के सुझाव प्रभावी रहे हैं। यह चक्र स्थिरता तथा अस्तित्व के लिए हैं।
- स्वाधिष्ठान या विधी-संबंधी (सॅक्रल) चक्र –
यह चक्र आपके मेरूदंड तथा नाभि के बीच में स्थित होता है। यह जल तत्त्वद्वारा शासित होता है। वास्तुशास्रद्वारा किसी भी निवास में जलतत्त्व की पूरी कार्यक्षमता को अनावृत्त किया जा सकता है। सरल वास्तु जलतत्त्व को रखने की सही जगह को निर्धारित कर सकता है। यह तत्त्व धन बनाने के और साधारण तंदुरूस्ती की रक्षा करने के विकल्पों को खोलता है।
- मणिपूर चक्र अथवा नाभि (नव्हल) चक्र –
नाभि चक्र नाभि में स्थित होता है। यह व्यक्ति के आत्मसम्मान पर राज करता है। यह अग्नि तत्त्वद्वारा शासित है। वास्तु में अग्नि तत्त्व का ज्यादातर रसोई डिझाइन द्वारा वर्णन किया जाता है। सरल वास्तु आपको वास्तु अनुरूप रसोई की रचना बनाने में मदद कर सकते हैं।
- अनाहत चक्र अथवा दिल (हार्ट) चक्र –
यह चक्र करूणा, स्नेह, विश्वास और उदारता, सब बातें जो दिल से शासित हैं। यह छाती के केंद्र में स्थित है और वायु तत्त्व द्वारा शासित है। जब किसी घर का डिझाइन वायु तत्त्व को बढ़ावा देकर, वास्तु शास्र के अनुकूल बनाया जाता है तब उसमें रहनेवाले लोग समृध्दि, उत्साह और खुशी को अनुभव करते हैं।
- विशुध्द चक्र अथवा थ्रोट (गले का चक्र) चक्र –
यह गले की नली में स्थित है और हमारे संचार तथा आत्म-अभिव्यक्ति को नियंत्रित करता है। एक व्यक्ति के आत्मविश्वास और आत्मसम्मान में सुधार के लिए वास्तु शास्र इस चक्र को खोलता है।
- अजना चक्र अथवा थर्ड आय (तिसरी आँख) चक्र –
यह चक्र भ्रुकुटी के केंद्र में स्थित है और विचार तथा कल्पनाओं को नियंत्रित करता है। जल तत्त्व से संतुलित होनेवाला यह चक्र विचार, अवसर और दूरदर्शिता की स्पष्टता को खोलता है।
- सहस्र चक्र अथवा क्राऊन (शीर्ष) चक्र –
यह चक्र सिर के शीर्ष पर स्थित होता है और ब्रम्हांडीय जागरूकता से हमें जोड़ता है। सरल वास्तु घर के अंतरिक्ष तत्त्व को बेहतर ढंग से सहस्र चक्र को संतुलित करने के लिए उपयोग में लाता है।