९. मुख्यद्वार की स्थिति एवं इसकी दिशा का महत्त्व व उपयोगिता

ऐसे लोग जो पहली बार कोई नई संपत्ति खरीदना चाहते हैं या एक निवेश स्वरुप, अपनी जमा-पूँजी को लगाना चाहते हैं, तो ऐसे लोगों द्वारा बिल्डरों / प्रोमोटरों / संपत्ति-दलालों / संपत्ति डेवलपर्स आदि से यह विशेष माँग की जाती है कि उन्हें प्रापटी वहीदिखाई जाए जो उत्तर अथवा पूर्व दिशा की ओर हो। इसी प्रकार से जिन लोगों के पास खुली जमीन के टुकड़े हैं, जिन्हें ‘प्लॉट’ की संज्ञा दी जाती हैं तथा जो व्यक्ति इन नियत जमीन के टुकड़ों पर अपना निजी मकान बनवाना चाहते हैं, भविष्य में, उनकी स्वयं की पसंद व जरुरतों के हिसाब से, भवन के सामने के हिस्से को उत्तर अथवा पूर्व दिशा की तरफ ही रखवाने के लिए बोलते हैं। यहाँ पर यह प्रश्न उठना उचित है कि घर के सामने की ओर की दिशा, उत्तरी या पूवी होना ही क्यों जरुरी हैं? क्या वाकई में यह दोनों दिशाएँ, इतनी महत्वपूर्ण हैं! उत्तर या पूर्व दिशा से ही, लोगों का इतना लगाव व क्यों हैं।

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यह भी एक शाश्वत सत्य हैं कि हम ऐसे परिवारों के बारे में भी जानते हैं, जो ऐसे निवासस्थानें में रहते हैं जहाँ पर घर के सामने की दिशा, पश्चिमी या दक्षिणी होती हैं, परन्तु इनका कोई प्रतिकूल असर परिवार के उढपर नहीं नज़र आता हैं। बल्कि ऐसे घरों में रहनेवाले परिवारों में अच्छी-खासी तरक्की व समृद्धि दृष्टिगोचर होती हैं, जो परिवार के सदस्यों की हरएक प्रकार से बढोत्तरी सुनिश्चिंत करती हुई ऐसे घरों में रहनेवालों का जीवन, हरएक प्रकार से सफल व सुखी बनाती हैं। जबकि वह न तो उत्तर की ओर न ही पूर्व की मान्यता प्राप्त दिशायें होती हैं। यह एक बहुत बड़ा अनसुलझा प्रश्न हैं कि इन घरों में रहने वाले सदस्यों की प्रगति हो ही कैसे सकती हैं?

ऐसा देखा गया हैं कि ऐसी अवस्थाओं में जहाँ इस प्रकार की विसंगतियाँ होती हैं वहाँ की स्थिति कुछ ऐसे ही होती होगीं या हैं, जैसे कि इस उदाहरण के द्वारा दिखाया गया हैं। यहाँ पर मैं एक ऐसे पिता का उदाहरण देना चाहूँगा, जिसका पूरा परिवार एक बड़े से मकान में वर्षों से रहता चला आ रहा था। इसी मकान में इनके बच्चों का जीवन बचपन से लेकर वृद्धावस्था तक, बीतता चला आ रहा था सभी लालन-पालन भी, वही उसी घर में होता आ रहा था। इसी प्रकार परिवार की दोतीन पीढियाँ एक ही घर में पलती-बढती चली आ रहीं थी। ऐसे घरों में सुख, समृद्धि व शान्ति का वर्चस्व अपनी चरम सीमा पर होता हैं व काफी लम्बे समय तक कायम भी रहता हैं। यहाँ पर हर पीढी, अपनी अगली पीढी की सुख-सुविधा, आराम व स्वास्थ्य की भरपूर देखरेख एवं अच्छे से अच्छे खाने-पीने की व्यवस्था करता हैं। ऐसे ही एक गृहस्थी में जहाँ पिता ने अपने कठिन परिश्रम व सफलता के बल पर अथाह सुख-समृद्धि, धन व संपदा इकट्ठी कर रखी थी। अपने संपूर्ण जीवनकाल में, एक ही घर में रहते हुए उन्हेंने खूब तरक्की की।

परन्तु विधि का विधान देखिए कि उन्ही का सुपुत्र जो पिता का जमा-जमाया व्यवसाय को अपने हाथ में लेता हैं, परिवार के ‘मुख्य – कमाईकर्ता’ के रुप में र्दुभाग्यपूर्ण उसी परिवार का नया प्रमुख, उसी घर में निवास करते हुए जहाँ उसके पिताजी ने अथाह धन-संपत्ति बनाई थी; अथक प्रयासों के बावजूद जमे-जमाये व्यवसाय को संभाल नही पाता हैं तथा कुछ ही समय में उसे भारी नुकसान उसी व्यवसाय में उठाना पड़ता हैं, परिणामस्वरुप अपने पिता द्वारा कमाई गई विराट संपत्ति, समृद्धि व धन को, गँवा बैठता है। अत इस प्रकार की ‘अजीबोगरीब घटना’ द्वारा, घर के वास्तु में परिवर्तन को समझ पाना या समझा पाना बहुत ही मुश्किल कार्य हैं, खासकर ‘मकान के मुख्य – दरवाजे की स्थिति’ के परिपेक्ष्य में। वस्तुत यह कैसे संभव हैं कि ‘घर का मुख्यद्वार’ ही यहाँ ‘दोषी’ हैं? वही मुख्य-द्वार जो पिता के लिए अत्यंत ही सुखदायी व फलदायी साबित हुआ, वही पुत्र के लिए प्रतिकूल फलदायी एवं अत्यंत विनाशकारी साबित हुआ!

इसी परिपेक्ष्य में एक बार हुबली शहर, कर्नाटक के ‘चैम्बर ऑफ कामर्स व इण्डस्ट्री’ में एक महत्त्वपूर्ण व्याख्यानमाला की कड़ी में, अपना व्यक्तव्य दे रहा था कि श्री मदन देसाई जोकि समारोह के ‘मुख्य अतिथि’ थे, उन्हेंने मुझसे एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण प्रश्न पूछा, जिसका संक्षिप्त सार इस प्रकार है :-

मुम्बई शहर में एक बहुमंजिला इमारत में, कुल मिलाकर २१ मंजिलें हैं। १३ वीं एवं १४ वीं मंजिल के सभी ‘फ्लैट्स’, पूरे वास्तु – संयत बनाए गए हैं, जिनमें ‘वास्तु-दोष’ लेशमात्र भी नही हैं। परन्तु, एक ऐसा व्यक्ति जो १३ वें माले पर रहता हैं, उसके उढपर ‘लक्ष्मीजी’ की अपार कृपा रहती हैं, जिसके फलस्वरुप उसके पास अपार समृद्धि व संपदा प्राप्त हैं, यहा तक कि उसे यह समझ पाना मुश्किल हो जाता है कि वह इतनी धन-संपदा को कैसे संभाले। इसके विपरीत उसी इमारात में एक ऐसा व्यक्ति भी है जो १४वीं मंजिल पर रहता हैं, जिसे अपने व्यवसाय में भारी नुकसान उठाना पड़ा है, उसकी आर्थिक स्थिति लगभग ‘पूर्ण – दिवालियापन’ पर पहुँच चुकी हैं। तब इस प्रकार के दोनों ‘अजीबोगरीब परिस्थितियों’ के पीछे का जवाब या तर्कसंगत स्पष्टीकरणक्या होगा? यह अत्यंत ही दुविधापूर्ण व विडंबना से भरा प्रश्न हैं, अब यह चूँकि, एक बहुत ही प्रासंगिक प्रश्न हैं, मुझे कोशिश करने दीजिए कि मैं सबको एक संतोषजनक उत्तर दे सकूँ।

किसी भी व्यक्तिविशेष के जन्म-तिथि के अनुसार ही, उसकी सबसे असरदार दिशाओं के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती हैं या पता लगाया जा सकता हैं। हरएक व्यक्ति की चार ‘शुभ और चार अशुभ दिशायें होती हैं। अगर केवल उत्तर व पूर्व दिशायें ही किसी एक व्यक्ति को लाभ पहुँचाती हैं तो ऐसे व्यक्ति के घर अथवा प्रतिष्ठान के द्वारा लाभ व समृद्धि पाई जा सकती हैं जिनके घर व प्रतिष्ठान इन्ही दिशाओं की ओर इंगित करती हैं। इसके विपरीत यदि यह दिशायें किसी व्यक्तिविशेष के लिए बेअसर साबित होती हैं तो पूरी संभावना हैं कि कोई व्यक्ति ऐसी अशुभ दिशाओं की ओर इंगित करनेवाले घर में रहकर, अपना सब कुछ गवां सकता है।

वह कारण जिसके वजह से मैं जोर देकर यह बात, इस उदाहरण द्वारा कहना चाहता हूँ कि अपना बहुमूल्य अपने पहले से बने हुए घरों में, जहाँ आप अभी रह रहे हैं, उनमें नासमझी द्वारा केई भी तोड़-फोड़ अथवा परिवर्तन न करें। यहाँ पर मुझे एक ‘बहुत ही सच्चे उदाहरण’ द्वारा यह बात समझानी पड़ेगी। एक बहुत ही मशहूर फिल्मी हस्ती, जो कन्नड फिल्म उद्योग के प्रसिद्ध निमानिर्देशक हैं, उन्हेंने अपने लिए वास्तु-दोषों से रहित, एक आलीशान मकान का मैसूर शहर में निर्माण करवाया, आन्ध्रप्रदेश के एक मशहूर वास्तु विशेषज्ञ द्वारा कदम-कदम पर गहन वास्तुपरीक्षण व निदान करवाया था। इस प्रकार के सिर्फ नाममात्र के वास्तु पंड़ित विशेषज्ञ द्वारा, उनके भवन में मरम्मत व अत्यधिक तोड़-फोड़ द्वारा महत्त्वपूर्ण वास्तु-परिवर्तनों को करवाने एवं उस ‘वास्तु-दोषमुक्त’ मकान में रहने के बावजूद उस मशहूर कन्नड निमा – निर्देशक के नाम, यश, कीर्ति, धन-संपदा आदि में अचानक भयंकर गिरावट आने लगी, उन्हें गलत वास्तु सलाह देने की वजह से ही उन्हें अत्यधिक आर्थिक परेशानियों से भरा नुकसान उठाना पड़ा। यहाँ पर यह महत्त्वपूर्ण प्रश्न उठना स्वभाविक है कि क्या कारण था कि इस प्रकार से उनकी किस्मत ने उन्हें धोखा दिया और उन्हें जबरदस्त आर्थिक संकट से जुझना पड़ा। इस प्रकार की घटना के पीछे का क्या कारण होगा, यह अत्यंत ही गंभीर विषय हैं।

जैसा कि पहले से विदित हैं, हरएक व्यक्ति की ‘चार असरदार व चार बेअसरदार दिशायें’ होती हैं, जो उस व्यक्तिविशेष की जन्म-तिथि के उढपर पूणृः आधारित होती हैं। परन्तु निमानिर्देशक श्री. एम. पी. शंकरजी की जन्म-तिथि के अनुसार, उत्तर की दिशा उनके लिए उनकी पहली बेअसरदार दिशा साबित हुई। इसके परिणामस्वरुप उनके करियर व व्यवसाय का पतन हुआ तथा उनके घर की सुख व समृद्धि भी धीरे-धीरे जाती रही। विपरित परिस्थितियों में अपनी बदकिस्मती को झेलते हुए उन्हें अपने, ‘नवनिमृ आलीशान हवेली’ को बेचना पड़ा। अचानक एक मित्र द्वारा मेरा श्री शंकर जी से परिचय करवाया गया मैने स्वयं जाकर प्रत्यक्ष रुप से उनके वर्तमान घर के वास्तु-प्लान में कुछ परिवर्तनों का सुझाव दिया जिसको शंकर जी ने बुरे वक्त मे खरीदा था। सरल वास्तु से प्रभावित हो कर शंकर जी ने मेरे बताये वास्तु दोष संबंधित सुझाव को ग्रहण करने का पक्का इरादा कर उनके वास्तु सुधारों को भवन के वास्तु प्लान मे समाहित किया।

इसके पश्चात् संपूर्ण तरीके से ‘सरल वास्तु सिद्धान्तों व निराकरण पद्धति’ को अपनाकर, बहुत ही कम समय में श्री शंकरजी ने एक अभूतपूर्व परिवर्तन का अनुभव किया, जिसके फलस्वरुप उनकी खोयी हुई यश, प्रतिष्ठा व कीर्ति वापस आने लगी तथा धीरे-धीरे उनकी आर्थिक विफलता, आर्थिक सफलता में परिवतृ होती गई और वह शीघ्र ही अपने पुरानी आर्थिक समस्याओं से छुटकारा पाने में सफल व सक्षम हुए। उन्हेंने आगे चलकर कन्नड़ सिनेमा क्षेत्र का बहुत ही सम्माननीय व यश प्रदान करनेवाला बहुचचृ ‘डॉ. राज पुरस्कार’ प्राप्त किया, इस कारण उनकी प्रसिद्धि दिन-प्रतिदिन ‘दिन दूनी व रात चौगुनी’ बढने ही लगी।

यहाँ पर श्री शंकरजी का उदाहरण देने का यही कारण था कि, चूँकि वह एक अत्यंत सम्मानित व नामी-गिरामी हस्ती हैं कन्नड फिल्म – उद्योग के एवं एक ऐसे नामवर शख्सियत हैं, जिन्हें सभी जानते हैं। इस प्रकार से उनका उदाहरण देकर, मैं अपना वक्तव्य लोगों के सामने अच्छी तरह व्यक्त कर सकता हूँ। सिर्फ वास्तुशास्त्र के नाम पर, वास्तु की दुहाई देकर, अपनी मेहनत की कमाई झुठे और मक्कार लोगों के वशीभूत होकर, पैसा बर्बाद करना कोई समझदारी का काम नही हैं। लाखों रुपयों की फिजूलखची, सिर्फ नाममात्र के काल्पनिक वास्तु-दोषों के निराकरण हेतु न बर्बाद की जाए; यही मेरा एकमात्र उद्देश्य है।

इसी उद्देश्य से वशीभूत होकर, जब दूसरी बार मैसूर शहर जाने का मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ तो अपनी व्यस्त व्याख्यानमाला व सेमिनारों से समय निकालकर मैंने श्री शंकरजी से दूरभाष (फोन) द्वारा संपर्क कर यह पता लगाने का प्रयास किया कि सरल वास्तु क्रियान्वयन के पश्चात्, जीवन तथा व्यावसायिक क्षेत्र में कुछ परिवर्तन आया हैं या नही । मुझे यह जानकर बहुत खुशी हुई कि, उन्हें अब अपने जीवन की सर्वोच्च पराकाष्ठा पर आधारित उन्नत जीवन-शैली के दिव्यदर्शन हो रहें हैं, जिससे उनके घर में सुख-शांति का वातावरण निमृ हो रहा है और नकारात्मक ऊर्जा से पैदा होने वाली मानासिक और शारीरीक समस्यायों का हमेशा के लिए छुटकारा मिल रहाहै। इस तरह उनकी केरियर में दुबारा से उछाल आ रहा है।

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