दक्षिण-पूर्व दिशा में नहीं हैं तो वह कोई बहुत बड़ी आपदा या मुसीबत का कारण नही बन सकती हम यह भी जानते हैं पूर्वज्ञान के द्वारा कि खाना बनाते समय, ‘गैस-स्टोव या गैस-चूल्हे’ की स्थिति व दिशा बहुत मायने रखती हैं तथा हमारे भारतीय समाज व जनसाधारण में यह मान्यता भी हैं; फिर चाहें वह एल.पी.जी. गैस का चूल्हा हो, कोयले का चूल्हा, लकडी का चूल्हा हो या ‘मैग्नेटिक इन्डक्शन’ वाला चूल्हा अथवा अत्याधुनिक ‘बिल्ट-इन-हाँब’ वाला चूल्हा ही क्यों न हो।
यहाँँ पर अब सबसे जरुरी बात यह उठती हैं कि कौन यह फैसला करेगा कि जब गृहिणी खाना बना रही हो तब गैस के चूल्हे की सही व शुभ दिशा क्या होनी चाहिए। खाना बनाते समय किस खास दिशा में खड़े होकर खाना बनाना शुभ माना जाता हैं। रसोईघर का सामान्य अवलोकन करके मैं यह शर्तिया तौर पर यह बता सकता हूँ कि घर के लोगें की स्वास्थ्य-संबंधी क्या-क्या समस्यायें हैं या वर्तमान समय में घर के सदस्यों को कौन-सी बीमारियाँ सता रही हैं।
हम लोगों ने इसकी प्रायोगिकता व व्यवहारिकता के बारे में विस्तृत प्रयोग व शोध किए हैं। इससे यह निष्कर्ष निकलता हैं कि यह बिल्कुल भी जरुरी नही हैं कि रसोईघर दक्षिण-पूवी दिशा में ही हो। इस संदर्भ में, मैं अपने पैतृक घर जो बागलकोट कर्नाटक राज्य में हैं, उसका उदाहरण देना चाहूँगा। मेरे पैतृक घर में कुल मिलाकर २४ कमरे हैं व रसोईघर दक्षिणी-पूर्व दिशा में, कतई भी नही हैं। मेरे पूर्वजें ने इसी घर में रहते हुए, सुख-समृद्धि का लाभ उठाते हुए, एक स्वास्थयप्रद व समृद्ध खुशियों से भरा जीवन-यापन कर एक सफल जीवन व्यतीत किया हैं।
इसलिए मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि किसी भी का रसोईघर का दक्षिणी-पूर्व दिशा में होना या ना होना तब तक नही मायने रखता हैं जब तक कि रसोईघर के कर्ता व मुखिया की शुभ दिशा के हिसाब से उचित दिशा व इच्छित दिशा की ओर न खुलता हो, जिसकी गणना उनके जन्मतिथि के अनुसार की गई हो। फ्लैटो, अपार्टमेन्टेंएवं कॉन्डोमिनीयमों में यह बताना बहुत ही मुश्किल हैं कि हमें हमारे हिसाब से ‘वास्तु-दोष रहित’ या ‘वास्तु-सिद्धान्तें’ पर आधारित, हमारी सुविधानुसार रसोईघर आराम से मिल जायें या बनवायी जायें। कुछ-एक छोटे-बड़े बदलाव सरल वास्तु के द्वारा, किचन में किए जा सकते हैं जिससे कि लोगें की विभिन्न समस्यायें दक्षिणी-पूवी दिशा के रसोईघर में न होने के कारण जो उत्पन्न हो रही हैं जो भी वास्तु-दोष पैदा हो रहें हैं या पहले से विद्यमान हैं, उन्हें या तो कम किया जा सके अथवा पूरी तरीके से ज› से ही समूल नाश किया जा सके।
दक्षिणी-पूर्व दिशा में किचन न होने की वजह से, कुछ छोटे-बड़े समायोजन किये जा सकते हैं, रसोईघर में वास्तु-दोषों के वजहें को दूर करने के लिए, सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि जो व्यक्ति खाना बना रहा हो, उसे भी अपने जन्म-तिथि के हिसाब से अपनी सबसे महत्त्वपूर्ण शुभ दिशा की ओर खड़े होकर, रसोई या भोजन बनाना चाहिए।