चित्र संख्या १ – दरवाजा उत्तरी दिशा मेें
चित्रानुसार संपूर्ण चित्र को ध्यानपूर्वक देखने के बाद कोई साधारण व्यक्ति भी, चित्र मेें मुख्य-द्वार को उत्तर दिशा की ओर होने की पुष्टि कर सकता हैैं, जैसा कि चित्र मेें विदित हैं।
चित्र संख्या २ – उत्तर-पूर्व दिशा की ओर मुख्य-द्वार
चित्र नं २ मेें मुख्य द्वार, उत्तर-पूर्वी दिशा की ओर है, जैसा कि वास्तु-शास्त्र से संबंधित ]ज्यादातर पुस्तकों मेें वर्णित हैैं।
एक तर्कसंगत व व्यवहारिक इंजीनियर होने के नाते वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अंतर्गत, मैैं पक्के तौर पर बिल्कुल भी इस विचार से सहमत नहीं हूँ।
चित्र संख्या ३ – उत्तर-पश्चिम दिशा की ओर मुख्य द्वार
चित्र नं ३ मेें हमें पता चलता है कि घर का मुख्य द्वार, उत्तर-पश्चिम दिशा की ओर खुलता है, जिसे बहुत अधिक संख्या में लोगों द्वारा मानकर रखी गई विचारधारा हैैं, परन्तु मैैं, इनकी विचारधारा व उनके विचारोें से पूर्णतःअसहमत हूँ। यहाँ पर मुझे, अपनी असहमति को प्रकट करने का कारण, विस्तारपूर्वक बताने दीजिए।
यहाँ पर मैैं, एक बहुत ही प्रिसद्ध विद्वान एवं तर्कशास्त्री, पवित्रमयी श्री सिद्धेश्वर महास्वामीजी (ज्ञान-योगाश्रम, बीजापुर, कर्नाटक, भारत) के बारे मेें कुछ बताना चाहूँगा। वास्तु के ऊपर भाषण देते हुए, उन्होेंने इस प्रकार के कुछ सामान्यतः मान्यताओें के ऊपर प्रश्नचिह्न लगाते हुए, पूरे के पूरे दरवाजे को ही अपने नियत स्थान से, जोकि ठीक घर के बीच में था, पूर्णतः हटाते हुए उत्तर-पूर्व दिशा मेें स्थापित करवाया। वाकई मेें क्या अंतर हैैं और यदि हैैं तो भी यह अंतर क्या कुछ असर डालनेवाला है या नहीं; यह एक बहुत ही विकट प्रश्न व समस्या है। यह कदम अब असरदार है – स्थिति परिवर्तन के कारण या असरदार था स्थिति परिवर्तन के पहले; यह महत्वपूर्ण प्रश्न ठीक वैसा ही हैैं जैसा कि हम यदा-कदा प्रश्न उठाते रहे हैैं, चित्र संख्या १, २ व ३ के अनुसार। मैैं चंद्रशेखर गुरुजी भी, श्री सिद्धेश्वर महास्वामीजी के विचारोें से संपूर्णतः सहमत हूँ और इस संबंध मेें विस्तृत तरीके से दिए गए सभी जवाबोें को समझने का प्रयत्न करुँगा, चित्र संख्या ४ के माध्यम से, जैसा कि निम्नलिखित चित्र द्वारा दर्शाया गया हैैं।
चित्र संख्या ४ – उत्तरी अनुभाग, उत्तर की ओर द्वार
मैं समझना चाहता हूँ, उस विधि को जिसके द्वारा हम किसी निर्माणाधीन स्थल मेें खास दिशा एवं दिशाओं के बारे मेें जान सकते हैैं। दिशा निर्धारण के लिए हम आम तौर पर ‘कंपास यंत्र’ का इस्तेमाल करते हैैं। घर के द्वार पर खड़े होकर, कम्पास को हथेली पर रखकर, जब हम खड़े होते हैं,
चित्र नं – ४ के अनुसार, तो हम पाते हैैं कि कम्पास की लाल सूई, हमेशा स्थिर अवस्था मेें, उत्तर दिशा की ओर ही इशारा करती हैैं।
चित्र संख्या ५ – उत्तर-पूर्व कोना – उत्तर द्वार का
अब चित्र संख्या ५ के अनुसार, घर के द्वार पर खड़े होकर जब हम, कंपास को अपनी हथेली पर रखते हैैं तो वस्तुतः उसे उत्तर-पूर्व दिशा की ओर इंगित करना चाहिए, परन्तु हम देखते हैैं कि कम्पास की सूई उत्तर दिशा की ओर ही इंगित करती हैैं। इसका अभिप्रय यह हैैं कि वास्तुशास्त्र से संबंधित ज़्यादातर पुस्तकों मेें जो उत्तर-पूर्व दिशावाले द्वार का वर्णन हैैं, वह सरासर गलत हैैं। यथार्थ मेें, उत्तर दिशावाला द्वार, उत्तर-पूर्व कोने मेें स्थित रहता हैैं। लोगोें मेें यह अवधारणा हैैं कि दरवाजे को जहाँ पर भी लगाया जाये घर के, वह दिशा ही उसकी सही दिशा होजाती हैैं, अर्थात् हम किसी भी दिशा मेें दरवाजे को लगवा सकते हैैं, बिना किसी वास्तु असर की चिन्ता से।
चित्र संख्या ६ – उत्तर-पश्चिमी कोना – उत्तर द्वार
अगर हम ऊपर दर्शाये गये चित्रनुसार, दरवाजे की दिशा की ओर देखते हैैं; जिन विभिन्न मुद्दों के बारे मेें हम पहले ही जिक्र कर चुके हैैं, इस मामले मेें भी उन्हेें, उतना ही योग्य पाते हैैं। बहुत सारे सिर्फ नाम के वास्तु-विद्वानोें, जिनको ‘कंपास’ के बारे मेें न तो कोई जानकारी हैैं और न ही इनके इस्तेमाल करने की प्रक्रिया के बारे मेें, लेशमात्र भी कुशलता नही हैैं। इसके अलावा ऐसे वास्तु-विशेषज्ञ पूरे तौर से अनभिज्ञ होते हैैं, वास्तु के वैज्ञानिक दृष्टिकोण, वैज्ञानिक तर्कशक्ति एवं वास्तु के अभियान्त्रिकी पक्ष व स्थापत्य सिद्धान्तों व आयामों के ज्ञान तथा अमल की विधि से।
वास्तु के पुरातन ज्ञान एवं आधुनिक अभियान्त्रिकी शास्त्र व स्थापत्य कला के ज्ञान एवं परस्पर मिलन के बिना, वास्तु के लाभ लोगों तक पहुँचाए ही नहीं जा सकते हैैं। बिना ज्ञान व विज्ञान के, वास्तु का कोई भी अस्तित्व इस आधुनिक युग मेें नहीं के बराबर ही हैैं।
जैसा कि पहले बताया जा चुका हैैं, मुख्य-द्वार की दिशा, वास्तु का आधारभूत स्तम्भ है। दिये गये उदाहरण से एकदम साफ तौर पर यह बात स्पष्ट हो जाती है कि उपरोक्त संबंधित कारणों की वजह से अस्पष्टता व गलतियाँ पैदा होती हैैं, इस संबंध मेें, मैैं घर के मुख्य द्वार की, ‘मुँह’ से तुलना करना चाहूँगा, जिसके द्वारा शरीर में, ‘भोज्य-पदार्थो व उनकी पौष्टिकता’ पहुँचती हैैं, जिससे हमारा मनुष्य शरीर व मन, फलता-फूलता हैं। अब अगर कोई दुर्घटना के फलस्परुप, बदकिस्मती मुख मेें कोई बिमारी हो जाती हैैं या यह अंग विशेष काम करना बंद कर देता हैैं, तो हमारे लिए खाना पीना असंभव या पीड़ा से भरा हुआ कार्य हो जाता हैैं। फलस्वरुप ऐसी स्थिति में बिना दाना-पानी के, हमारे मानव शरीर की कार्यक्षमता व खाना पचाने की क्षमता एकदम से गिर जाती हैैं शरीर मेें रोगोें से लडऩे की प्रितरोधक क्षमता की जबरदस्त कमी हो जाती हैैं, जिससे हमारा मनुष्य शरीर एकदम जर्जर तथा कमज़ोर हो जाता है।
लगभग यही सब हमारे घर के मुख्य द्वार के साथ भी होता हैैं। अगर घर का मुख्य द्वार, घर के किसी भी विशेष पारिवारिक सदस्य की अशुभ दिशा की ओर खुलता हैैं, जोकि उस व्यक्ति-विशेष के जन्म-तिथि के अनुसार, गणना द्वारा निकाली जाती हैैं, तो प्रकृतिक तरीके से खुद ही उस व्यक्ति विशेष के लिए उस घर मेें परेशानियों का आना तय रहता है। वैज्ञानिक और तर्क संगत वास्तु की इस प्रकार की सोच को स्थापत्य वास्तुकारों एवं इंजिनियरों की भी स्वीकृति मिली हुई है। इसके अलावा निर्माण-उद्योग व अचल संपत्ति से संबंधित उद्योग-धन्धोें के विशेषज्ञोें ने भी इस सिद्धांत को स्वीकार किया है।
चित्र संख्या ७ – उत्तर-पूर्व द्वार उत्तर दिशा मेें
चित्र संख्या ८-उत्तर-पूर्व द्वार उत्तर-पूर्वी कोने मेें
चित्र संख्या ८– का मुख्य-द्वार,
दरवाजे की स्थिति को उत्तर-पूर्वी कोने व दिशा मेें दर्शाते हुए
चित्र संख्या ९– उत्तर-पूर्व द्वार, उत्तर-पश्चिमी कोने मेें
चित्र संख्या ९ का मुख्य-द्वार, अपनी उपस्थिति को उत्तर-पूर्वी दिशा के उत्तर-पश्चिमी कोने की तरफ दर्शाता है।
हमे स्पष्ट तौर पर इन चित्रोें से यह साफ पता चलता हैैं कि साधारण लोग किस प्रकार से उत्तर-पूर्वी दरवाजे या द्वार के बारे मेें दुविधापूर्ण स्थिति के शिकार होते हैैं। वास्तुशास्त्र मेें, ‘सही दिशा की पहचान’ को ‘पहला कदम’ समझा जाता हैैं। इसलिए अगर इस पहले कदम मेें ही हम लडख़ड़ा जाते हैैं तो इससे बहुत ज्यादा गडबडी की स्थिति उत्पन्न हो जाती हैैं, जो हमें तथा हमारे घर मेें रहनेवाले सदस्योें के जीवन को प्रभावित करती हैैं। इसके विपरीत यदि हम हरएक व्यक्ति के हिसाब से दिशाओं को सही तरीके से पहचानते हैैं, तो हमारी समस्याओें को काफी हद तक कम किया जा सकता हैैं, उसी जगह पर एवं उसी समय जहाँ पर हम उपस्थित हो।