स्वाधिष्ठान चक्र ( इसे धार्मिक चक्र अथवा उदर चक्र भी कहते हैं ) मानवी शरीर का दूसरा प्राथमिक चक्र है । ` स्वा ‘ का शाब्दिक अनुवाद स्वयं और ` स्थान ‘ मतलब जगह होता है । स्वाधिष्ठान चक्र वो जगह हैं जहाँ से मानवी समझ की और मानवी संवर्धन का दूसरा चरण की शुरूआत होती है । ऐसे कहा गया है कि यह चक्र मन का आवास अथवा अचेतन मन के लिए घर होता है । गर्भाशय में गर्भधारणा होने के बाद से जीवन के सभी अनुभव तथा यादों का संग्रह यहाँ किया जाता है । यह चक्र नकारात्मक लक्षणों की जानकारी के बाद उसे नष्ट करके व्यक्तित्व के विकास को स्पष्ट करता है ।

यह चक्र कमल के साथ छह पंखुड़ियाँ से प्रतीकात्मक रूप से दर्शाया जाता है जिसमें हर पंखुड़ी छह नकारात्मक विशेषताओं का प्रतिनिधित्व करती है । स्वाधिष्ठान चक्र का तत्त्व जल है और इसका रंग नारंगी है । इसका मंत्र ` वाम ‘ है ।

स्वाधिष्ठान चक्र टेल बोन पर नाभि केंद्र के बीच तथा रीढ़ की हड्डी के तल में स्थित होता है ।

स्वाधिष्ठान चक्र मुख्य रूप से लैंगिक तथा प्रजनन अंगो के कार्यों को नियंत्रित करता है । बड़ी अंतड़ी, गुर्दे, रक्त परिसंचरण, शरीर के तरल पदार्थ और स्वाद की पहचान इन शरीर के अवयव हैं जो स्वाधिनता चक्र के तहत कार्य करते हैं । टेस्टोस्टेरॉन तथा एस्ट्रोजन हार्मोन के निर्माण को नियमित करके यह व्यक्ति के लैंगिक व्यवहार को प्रभावित करता है ।

अवरूध्द तथा असंतुलित स्वाधिष्ठान चक्र की वजह से प्रजनन के मामले, नपुंसकता, मासपेशियों में दर्द, पीठ के नीचले हिस्से में दर्द, एन्डोमेट्रीओसिस, पीसीओएस और उदासी बीमारियाँ हो सकती है ।

  • अति सक्रिय स्वाधिष्ठान चक्र –
    अति सक्रिय धार्मिक चक्र के साथ कोई भी व्यक्ति सपने देखने के स्वभाव के साथ अत्यधिक भावुक होता है या नाटकीय होता है । व्यक्ति लैंगिक आसक्ति के साथ पीड़ित हो सकता है । विपरित लिंग के लिए लगाव भी असाधारण हो सकता है ।
  • असामान्य रूप से सक्रिय स्वाधिष्ठान चक्र –
    कोई भी व्यक्ति जिसका धार्मिक चक्र असामान्य रूप से निष्क्रिय है वह भावनात्मक रूप से अस्थिर तथा अधिक संवेदनशील होगा । वे अपराधी तथा शर्म की भावना से भरपूर होंगे और खुद को सांसारिक सुखों से त्याग देंगे । वे अपने आपको आम तौर पर भीड़ से दूर रखकर एकांत में रहना पसंद करेंगे ।

संतुलित दूसरे चक्र वाले लोग रचनात्मक तथा भाववाहक और खुशी को अपने जीवन में लाने में निश्चित होते हैं । स्वस्थ व समाधानी रिश्ते इन व्यक्तियों से बनती है । व्यक्ति जिनमें ईमानदारी तथा नैतिकता होती है और जिनको रिश्तों का मूल्य होता है उनका स्वाधिष्ठान चक्र संतुलित होता है ।

  • स्वाधिष्ठान चक्र का अवरूध्द होने का मुख्य कारण है मासपेशियों में तनाव उत्पन्न होना । इस चक्र को खोलने का सबसे अच्छा तरीका है शारीरिक गतिविधियाँ जैसे जिम, व्यायाम, दौड़ना, चलना, नाच करना आदि । इन अभ्यासों की वजह से मासपेशियों शिथिल हो जाती है और चक्र खुल जाता है ।
  • नाभि क्षेत्र के आसपास ध्यान केंद्रित करके और ध्यान करते समय नारंगी रंग की कल्पना करने से भी लाभदायक होता है । नारंगी रंग के कपड़े पहनने से अथवा नारंगी रंग के परिवेश में बैठने से ( जैसे की सूरज उदय होने के समय या संध्या के समय ) लाभदायक होता है ।
  • योग में त्रिकोनासन ( या त्रिकोन की मुद्रा ), बालासन ( या बच्चे की मुद्रा ), बितिलासन ( या गाय की मुद्रा ) और नटराजासन ( या नर्तक की मुद्रा ) के आसनों से दूसरे चक्र में सतुलन का प्रभाव पड़ता है ।
  • घर में अथवा कार्यस्थल पर सरल वास्तु के सिध्दांतों का अनुसरण करने से और विशिष्ट कार्य करते समय अनुकूल दिशाओं का सामना करने से चक्रों को संतुलित किया जा सकता है ।
  • दूसरे चक्र के लिए खाद्य पदार्थों में संतरे, शहद, नारंगी ( मॅन्डेरिन्स ), खरबूज, बादाम आदि शामिल हैं ।