६. जन्म-मृत्यु चक्र का सरल-वास्तु से संबंध

वास्तु एक विज्ञान की तरह, विभिन्न देशें जैसे भारत, चीन, थाईलैण्ड, मलेशिया, सिंगापुर एवं अन्य दक्षिण-पूर्व ऐशियाई देशें में अलग-अलग रुपें में प्रचलित हैं, जैसे पेंगशूई, इत्यादि। वास्तु से संबंधित साहित्य व ज्ञानवर्धक सामग्री भी, एक देश से दूसरे देश में, विभिन्न रुपें में दिखाई देती हैं तथा भारतवर्ष के अन्दर भिन्न अर्थोंवाले स्वरुपें में, एक राज्य से दूसरे राज्य में, दृष्टिगोचर होती हैं। परन्तु इन सभी अवस्थाओं में एक बात जो हरएक में एक उत्प्रेरक की तरह काम करते हुए पायी जाती हैं वह हैं गुरुत्व देना, घर या गृह के उढपर, कार्यक्षेत्र या किसी भी स्थापित उपक्रम के उढपर जिससे व्यक्ति अथवा व्यक्ति-विशेष का परिवार निवास या कार्य करते हुए संलग्न होता हैं।

उपलब्ध वास्तु से संबंधित सभी प्रकार के साहित्य में इस बात का महत्त्वपूर्ण एवं अनिवार्य रुप से वर्णन हैं कि अगर व्यक्ति-विशेष के घर की वास्तु के हिसाब से स्थिति तथा परिस्थिति प्रतिकूल अथवा अनुकूल नहीं हैं, या वास्तु-सिद्धान्तों के नियत स्तर व मापदण्डें पर खरी नहीं उतरती हैं तो विकट परिस्थितियें में गंभीर वास्तु-दोषें के रहने की स्थिति में, घर के कर्ता अथवा कमाई करनेवाले मुख्य सदस्य को, प्राणें का भी खतरा उत्पन्न हो सकता हैं।

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सचित्र वर्णित निम्नचित्रित आयताकार आकार में, दो त्रिभुजें को एक आयत के अंदर देखा जा सकता है, जो जन्म व मृत्यु चक्र को पृष्ठ के मध्य भाग में अथवा अगले पृष्ठ पर प्रदर्शित कर सकती है, यदि आवश्यक हुआ तो। जन्म एवं मृत्यु किसी भी व्यक्ति के हाथ में नही हैं। ऐसा कहा जाता है कि, भगवान या उढपरवाले के हाथ में ही हमारी ज़िंदगी की चाबी हैं तथा हमारा अस्तित्व एक ताले की तरह हैं, जिसे जब चाहे उढपरवाला खोल या बंद कर सकता हैं। इसका अर्थ यह है कि हमारे जीवन व मृत्यु की डोर, पूरीतरह से भगवान के हाथ में ही हैं। यह एक कटु सत्य है कि इस मृत्यु-लोक अर्थात् पृथ्वी पर रहनेवाला हरएक प्राणी, कभी न कभी तो मृत्यु को प्राप्त होगा, जिससे उसकी संपूर्ण जीवन-लीला समाप्त हो जाएगी।

हर एक प्राणी अपनी जीवन-अवधि समाप्त होने तक जीवित रहता हैं, परन्तु कोई दुर्घटना या हादसा होने पर अकस्मात या अप्रत्याशित किसी घटना के घटने पर, उसकी जीवन-लीला तुरन्त समाप्त भी हो सकती है। इसी प्रकार मनुष्यें में अत्यधिक मानसिक व शारीरिक कमजोरी व कमी होने पर, असमय मृत्यु को प्राप्त हो जाना, कोई आश्चर्यचकित कर देनेवाली घटना नही हैं।

हमारे पुराणों, वेदों व अन्य धार्मिक ग्रंथें में यह विदित हैं कि मनुष्य जीवन नश्वर होता हैं, जिसे विधाता ने हमारे किस्मत या भाग्य के हिसाब से पहले से ही निर्धारित कर रखा हैं। यह शाश्वत सत्य हैं कि जो व्यक्ति इस पृथ्वी पर जन्म लेता हैं, उसे एक न एक दिन मरना ही होता है। मौत का डर एक सच्चाई है एक ऐसा कड़वा सत्य है जो हरएक व्यक्ति को दिन-प्रतिदिन या कभी-न-कभी तो जरुर सताता है। हम इससे किसी भी हालत में बच नहीं सकते हैं। मौत का डर एक ऐसी डरावनी सच्चाई हैं जो चाहे न चाहे, हमें स्वीकार या झेलना पड़ सकता हैं तथा इससे बचने का कोई भी उपाय, किसी भी वैज्ञानिक के शोध के द्वारा, अभी तक तो नही निकाला है।

आयु का भय दिखाकर बहुत सारे तथाकथित बहुत विशेषज्ञों द्वारा धूर्तता के साथ, छलबल-कौशल के बल पर जनसामान्य के मन-मस्तिष्क पर पक्के तौर पर निरंतर यह बात बिठाई जा रही हैं, कि यदि मनुष्य वास्तु पंडितों की राय के अनुसार समुचित ‘वास्तुपरिवर्तन’ नही कराते हैं तो ‘मौत का डर’ सचमुच सही साबित होगा तथा उनके परिवार के प्रमुख या पैसा कमानेवाले जो परिवार का अभिन्न अंग हैं, उसकी असमय मृत्यु अवश्य होगी, जिसके लिए वह कर्ता अथवा यजमान ही सीधे तौर पर जिम्मेदार होगा। ‘मौत के डर’ से सभी थर्राते हैं, यह एक परम सत्य है।

सच्चाई तो यह हैं कि वास्तु का ‘जन्म-मरण चक्र’ से कोई लेना-देना ही नहीं हैं तथा यह एक सच्चाई भी हैं कि वास्तु किसी भी व्यक्ति के मृत्यु के लिए न तो कभी जिम्मेदार था और न ही रहेगा, क्योंकि वास्तुशास्त्र पुरातन काल से मनुष्य के सामाजिक जीवन का उत्थान करता ही आ रहा हैं, और किसी भी प्रकार के नुकसान के लिए भी वास्तु जिम्मेदार नहीं हैं। वास्तु न तो किसी व्यक्तिविशेष के जन्म के लिए उत्तरदायी हैं और न ही किसी के मृत्यु के लिए। झुठे और मक्कार वास्तुशास्त्रियें ने अपना ‘उल्लू-सीधा’ करने के लिए यह सामाजिक भ्रान्ति भी फैलायी हुई हैं कि यदि मुख्य द्वार घर के बीच में स्थित न हो, तो यह घर के सभी सदस्यों अथवा घर के मुखिया के असमय मौत का कारण बन सकता है।

इसी प्रकार से, यह बात भी एकदम सत्य हैं कि, इस संसार में किसी भी व्यक्ति अथवा घर के सदस्य विशेष अथवा अन्य सदस्यें के मौत की नियत तिथि, समय, दिवस आदि की पहले से भविष्यवाणी किसी भी स्थिति में, नही की जा सकती हैं। कितना भी बड़ा व प्रसिद्ध ज्योतिषी हो या भविष्यवक्ता हो, वह किसी भी परिस्थिति में, किसी भी व्यक्ति के जन्म-मृत्यु आदि की ‘सटीक भविष्यवाणी, किसी भी कीमत पर नहीं कर सकता हैं। ‘भृगु संहिता’ से लेकर ‘नादी-शास्त्र’ तक, कोई भी धार्मिक ग्रंथ किसी भी प्रकार से किसी भी व्यक्ति के मृत्यु की घोषणा कदापि नही कर सका है।

यहाँ पर मैं, इस पुस्तक के निम्नलिखित पाठ के माध्यम से, इस प्रचलित भ्रान्ति तथा अंधविश्वास का विरोध करते हुए इस विचारधारा एवं विश्वास के समूल नाश हेतु, यह ऐलान करता हूँ कि वास्तु किसी भी व्यक्ति के, किसी भी प्रकार से, मृत्यु का कारण, किसी भी परिस्थितियें में कदापि नहीं हो सकता हैं, चाहें वह आपके अथवा आपके परिवार के किसी भी सदस्य के जीवनमरण की बात ही क्यें न हो। इसी प्रकार से आपका घर, निवास-स्थान या कार्यस्थल से संबंधित किसी भी प्रकार से आपके एवं आपके परिवार के किसी भी सदस्य के मृत्यु का कारण कभी भी नही हो सकता है।

जिस प्रकार से किसी भी मनुष्य के पास ऐसी कोई शक्ति या ताकत नही होती हैं जो यह स्पष्ट तरीके से ‘जन्म-मृत्यु चक्र’ की सच्चाई को काफी पहले से ही बयान कर सके, फिर चाहे यह खुद के संबंध में हो अथवा परिवार के किसी भी सदस्य के जन्म-मृत्यु के संबंध में हो। वास्तु द्वारा किसी भी व्यक्ति के मृत्यु का कारण हो जाना अथवा बन जाना, एक प्रकार से हास्यास्पद बात प्रतीत होती हैं। यहाँ पर भारपूर्वक मैं अपना वक्तव्य देना चाहता हूँ कि वास्तु, आपके वास्तु-दोष रहित गृह अथवा निवास-स्थान पर रहने के लिए प्रेरित तो कर सकती हैं चिरकाल तक, जब तक की आपकी मृत्यु न हो, परन्तु ‘वास्तु’ किसी भी व्यक्ति को ‘मृत्यु’ कभी भी प्रदान नही कर सकती हैं और न ही उसकी मृत्यु का कारण ही बन सकती हैं।

वास्तुशास्त्र एक कला हैं, जो आपके घर/कार्यस्थल के वातावरण को ‘शुद्ध व फलदायक’ बनाती हैं आपके लाभ के लिए, जिससे आपका परिवार व आप, एक सुखी, शान्तिपूर्ण, सामंजस्यता से भरपूर व संतुष्टि से परिपूर्ण, एक फलदायी जीवन जी सके। यहाँ पर मैं आपसे विनती करुँगा कि आप इस प्रकार से समाज में व्याप्त ‘तोड़-मरोड़’ कर पेश की गई भ्रान्तियें के उढपर, न तो ध्यान दें और ना हो इन भ्रमित कर देनेवालो झूठे वास्तुशास्त्रियें के सिद्धान्तों के उढपर किसी भी प्रकार से भरोसा ही ना करें। इनका उद्देश्य सिर्फ निजी लाभ तथा अपने निहित स्वार्थ के ऊपर ही पूर्णत आधारित हैं, जो वास्तुशास्त्र के नाम को कलंकित कर रहा है।

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