आधुनिक निर्माण कला के अनुसार से भी, ‘मास्टर-बेडरुम’ (मुख्य-शयनकक्ष) के सा स्नानगृह व जुड़े शौचालय का होना, शहरी उपभोगताओं की जरुरतों को ध्यान में रखकर ही, किया जाता है ‘नामी-गिरामी’ व मशहूर बिल्डरें व प्रमोटरों द्वारा, ‘पाँच सितारा होटलें’ की आंतरिक साज-सज्जा व भवन-निर्माण कला के अनुरुप बनाकर, अपनी निर्माणाधीन इमारतें को मुँह मॉँगे दाम पर बेचने के लिए, ग्राहकों को गुमराह करना व उन्हें ऐसी ही आलीशान संपत्ति को खरीदने व बेचने का प्रयास करना, जहाँ वास्तु विज्ञान को बिल्कुल भी तवज्जो न दी जाए; इस तरह से एक प्रकार का प्रचलित दौर ही चल पड़ा है।
रसोई घर का स्थान हमारे जीवन और परिवार के लिये महत्व है इसका प्रभाव आपके परिवार के आरोग्य और सम्पत्ति पर पड़ता है। कभी-कभी निर्माण पद्धति के फलस्वरुप, शौचालयों व स्नानघरों की दीवारें, रसोईघर व पूजाघर के दीवारों को स्पर्श करती हुई मिलती हैं। इस प्रकार की आधुनिक इमारतों में वास्तु-दोषों की उपस्थिति बहुत ज्यादा होती हैं, जिसके परिणामस्वरुप घरों व कार्यस्थानों में विभिन्न ‘वास्तु-दोषों’, नकारात्मकता व निराशावादी दृष्टिकोण की पुनरावृत्ति हो जाती हैं। सोच को बढ़ावा देता जिससे घर के हरएक सदस्य का दूसरे से छोटी-छोटी बातों पर लड़ाई व मनमुटाव, रिश्तेदारों व आस-पडोस के साथ झगड़ा होना, अनिंद्रा, क्लेश, फिजूल चिंता, अत्यधिक तनाव व आधुनिक जीवनशैली की विसंगतियाँ, मद्यपान व अन्य व्यसनों का परिवार के सदस्यों के उढपर दुप्रभाव व कुपरिणाम होता है।
हम लोग हमारे दिन व रात की एक महत्त्वपूर्ण समय-अवधि, अपने-अपने शयन-कक्ष में ही बिताते हैं, खासकर रात्रि के समय सोने, आराम के क्षणों में टी.वी. देखते हुए, अपने पारिवारिक सदस्यों के साथ परस्पर वार्तालाप करते हुए या किसी भी अन्य कार्य के लिए अपने शयनकक्ष का ही ज़्यादा से ज़्यादा इस्तेमाल करते हैं। आज के परिपेक्ष्य में तो व्यक्ति शयनकक्ष में ही टी.वी. देखते हुए अपने चिर-परिचितों के साथ भोजन-नाश्ता इत्यादि भी कर ही लेता है।
शयन कक्ष मे अटैच्ड टॉयलेटो के वजह से अकसर लोग इन्हें इस्तेमाल करते हैं, जिसके वजह से इनके दरवाजों को खोलते ही, बहुत अधिक मात्रा में या बडी मात्रा में नकारात्मक ऊर्जाओं का फैलाव हो जाता है, जिससे पूरे शयन कक्ष में ही अत्यधिक मात्रा में नकारात्मक शक्तियों का स्थायी रुप से वर्चस्व हो जाता हैं, जो अनेकों प्रकार के विकारों को जन्म देती हैं। इससे पूरे घर व खासकर शयनकक्ष में विश्राम करनेवाले सदस्यों में अनेक बीमारियाँ व अन्य प्रकार की स्वास्थ्यसंबंधी विकारों को जन्म देती हैं।
आज के इस ‘अत्यधिक- आधुनिक’ समाज में व युग में, हमें यह बात समझ में आती हैं कि हमारे घर के ‘बड़े-बुजुर्गों’ में, खासकर ७० व ८० के उम्रवाले व्यक्तियों में किसी भी प्रकार की ‘आधुनिक-जीवनशैली’ से संबंधित बीमारियाँ नही होती हैं जैसे कि उनके ही परिवारों में ज़्यादातर ‘मध्यउम्र’ या ३० से ४५ उम्र के सदस्यें में पाई जाती हैं जैसे, ‘ब्लड-प्रेशर, मधुमेह, हड्डियों व जोडों का दुखना, आर्थराईटिस, स्लिप-डिस्क, मोटापा, थुलथुलापन, अत्यधिक थकान व तनाव, सीने में दर्द होना, हृदयगति का कम या तेज होना, अपच, किडनी व गौल-ब्लाडर में पत्थर होना, माईग्रेन होना, जल्दी-जल्दी बिमार पड़ना तथा स्ट्रेस संबंधी बीमारियों का होना इत्यादि को ही ‘आधुनिक जीवन का श्राप’ कहा जाता हैं।
अनिंद्रा, दिल की बिमारी, मानसिक अवसाद व शारीरिक कमजोरी, स्टैमिना (सहनशक्ति), माईग्रेन, सरदर्द, चिड़चिड़ापन हमारे आज के आधुनिक जीवन का दूसरा पर्याय ही बन गये हैं।
मेरे गहन शोध व अध्ययन के द्वारा यह निष्कर्ष निकलता हैं कि इस पृथ्वी पर नकारात्मक ऊर्जाओं का रोज के हिसाब से अधिक से अधिकतम मात्रा में आधिपत्य व भराव हो रहा हैं, जिससे पृथ्वी पर नकारात्मक शक्तियों का जोर बढता ही जा रहा हैं, उस समय में भी, जब हम आराम कर रहे होते हैं या सोते हैं। जब हम चैन से गहरी नीद में सो रहे होते हैं तो प्राकृतिक तरीके से हमारे सात चक्रों का जागरण होता है जिसके फलस्वरुप हमारे तन व मन में स्फूर्ति व ताजगी का नवसंचार होता हैं और हम खुशी से अपनी नीद त्यागकर उठते हैं और पूरे दिन को अच्छे तरीके से व्यतीत करने के लिए प्रेरित होते हैं।
आज के हमारे घरों, फ्लैटो और आधुनिकतम अपार्टमेंट्स आदि में होनेवाले शयन कक्षों के साथ जुडे हुए (अटैच्ड्) शौचालयें व स्नानघरों से निकली नकारात्मक शक्तियो का प्रभाव, घर में स्थित सकारात्मक शक्तियों पर पडता हैं, जिससे अपने बेहतरीन व शुभ दिशाओं में सोने के बावजूद तथा समयानुसार यथासंभव व पर्याप्त विश्राम मिलने के बावजूद, हम सबको वह वांछित ऊर्जा व स्फूर्ति नहीं मिल पाती हैं क्योंकि उसका स्तर वैसा ही यथावत बना रहता हैं जैसा कि आम दिनों में होता है।
वास्तु के अनुसार ऐसा कहा जाता है, बाथरुम आपके बेडरुम की सारी ऊर्जा खिंच लेता है। आज हमें यह सोचना हैं कि किस प्रकार से व किन तरीको से यह संभव हो पाए कि हम अपने आसपास की नकारात्मक ऊर्जाओं को, जिनका वास हमारे घर व कार्यस्थलों में हैं, उन्हें या तो हम हटा सके या उनका असर हम कम कर सके। यह सच हैं कि हम अपने जीवन की सच्चाईयें से दूर नही भाग सकते हैं तथा हमें महानगरों व शहरें में, अपार शहरीकरण के कारण भूमि का ‘प्लॉट’ लेकर, वास्तु-परायण मकान नही बनवा सकते हैं, जिसके कारण हमें बहुमंजिला इमारतों में रहने को बाध्य होना ही पड़ता हैं। इसके अलावा आधुनिक फ्लैटों, अपार्टमेन्टों, कॉन्डोमिनीयमों, रोहाउढसों इत्यादि जैसे घरों में रहना आज के आधुनिक जीवन-शैली का ही अनिवार्य अंग हैं, जिसको हम बिल्कुल भी अनदेखा नहीं कर सकते हैं। लेकिन यहाँ पर यह कहना भी उचित होगा कि इन स्थानों को तोड़-फोड़ कर हम उसे वास्तु-योग्य कभी भी नहीं बना सकते हैं, फिर भी यह सत्य हैं कि ऐसे स्थानों का इस्तेमाल हम अपने हित में करवा सकते हैं; सरल वास्तु सिद्धान्तों व विचारें को अपने सीमित आर्थिक संसाधनों व आवश्यकताओं के अंदर ही बिना किसी गृह-परिवर्तन या मरम्मत के द्वारा अपने घरों में लागू करवा सकते हैं।
सीमित आर्थिक समथा के दायरे में ही हम अपने घरों / कार्यस्थानें में सरल-वास्तु का क्रियान्वयन करवा सकते हैं, जिनके द्वारा हमारे घर व कार्यस्थान में सकारात्मक ऊर्जा के स्रोतों में वृद्धि हो सकती हैं, जिसके फलस्वरुप आप तथा आपके परिवार के सदस्यों व नाते-रिश्तेदारें को आजीवन सुख-शान्ति, स्वास्थ्यप्रद जीवन, आत्मिक संतुष्टि व समस्याहीन जीवन नसीब होगी, जो उन्हें इस प्रकार का स्वर्णिम आशा से परिपूर्ण जीवन प्रदान करेगी और न ही परिस्थितियों द्वारा हमारे उढपर थोपी जाएगी। सिर्फ इसी प्रकार से ही हम अपने जीवन को पूरी तरीके से जीने योग्य व सफल बना सकते हैं।