कमरों से थोडी दूर पर ही स्थित होते हैं। इस प्रकार के पैतृक घरों में ऐसे वास्तु-दोषों का पैदा होना, एक असंभव व अप्रत्याशित सी बात प्रतीत होती हैं। तो यहाँ पर यह प्रश्न उठना स्वाभाविक हैं कि वह कौन सा ‘डरानेवाला कारण हैं’ जिसकी वजह से हम जो उत्तर-पूवी दिशा में खुलनेवाले शौचालयों व स्नानघरों को ‘पूणृः निषेध’ रुप में देखते हैं।
चलिए इस विषय को स्पष्ट रुप से समझने के लिए हम, गहन विचार-विमर्श करें। प्राचीन व रुढ़िवादी विचारों की आजकल के वर्तमान युग में, कोई प्रासंगिकता व उपयोगिता हैं ही नही। सरल-वास्तु यहाँ प्रायोगिक व यर्थाथवादी होने की बात करती हैं; साथ ही साथ तर्कसंगत होने व विवेकपूर्ण होने को भी प्रोत्साहित करती हैं। सरल वास्तु के पास तथ्यों व ठोस सबूतों के आधार पर विश्वास करने के योग्य पर्याप्त शक्ति हैं, जिससे कि घरों, प्रतिष्ठानों का उत्तरी-पूर्व दिशा की ओर होने पर भी किसी भी प्रकार के बुरे समय, श्राप अथवा नजर लगना या बुरी किस्मत का फेर इत्यादि का प्रभाव न तो पड़ता है और न ही आज के वर्तमान युग में संभव ही हैं।
इस प्रकार का रुढिवादी विश्वास आजकल बहुत पुराना हो गया है। इस संबध में हमें यह याद रखना चाहिए, जिसकी घोषणा मैं पहले ही कर चुका हूँ कि हरएक व्यक्ति की चार शुभ व चार अशुभ दिशायें होती हैं, जोकि उसकी स्वयं की जन्म-तिथि के उढपर आधारित हैं, जो व्यक्ति की वास्तु-स्थिति और उसकी जन्म-तिथि से मेल खाती हैं।
जैसा कि पहले बताया गया हैं, यदि किसी व्यक्ति की अशुभ दिशा उत्तर-पूवी हैं तो इस बात पर विश्वास करना एकदम सही होगा कि किसी शौचालय का उत्तरी-पूर्व दिशा की तरफ होना, उस व्यक्तिविशेष के उढपर कोई भी असर नही छोड़ेगा चाहे कुछ भी हो जाए।
इस बात को सिद्ध करने के लिए मुझे अपनी स्वयं की ज़िंदगी से जुड़ी बात सुनानी पड़ेगी। नवी मुम्बई क्षेत्र से संबंधित उस फ्लैट में जहाँ मैं आज भी रहता हूँ, उसका शौचालय उत्तरी-पूर्व दिशा में ही हैं। मैं आपको विश्वास दिलाना चाहता हूँ कि इस घर ने मुझे लाभ ही लाभ पहुँचाया हैं तथा मेरे यश, नाम व कीर्ति में भी अभूतपूर्व बढोत्तरी हुई है।
मेरे मामले में, मेरी जन्म-तिथि के हिसाब से दक्षिणी-पूर्व दिशा, मेरे लिए सबसे शुभ व लाभदायक दिशा है। उत्तर दिशा भी मेरे लिए शुभ-दिशाओं में से एक है तथा मुम्बई में मेरे पास जो मकान हैं, वह भी उत्तर दिशा की ओर खुलता हैं। मुझमें यह जागरुकता है कि उत्तरी-पूर्व दिशा मेरे लिए शुभ दिशा नही हैं परन्तु इस उत्तरी-पूर्व दिशा स्थित शौचालय ने मुझे या मेरे परिवार के किसी भी सदस्य की ज़िंदगी में या संपूर्ण जीवन में आज तक कोई भी कष्ट नही पहुँचाया है और न ही कोई समस्या खड़ी की हैं।
बल्कि, मुझे अनगीनत राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारें से नवाज़ा गया हैं, खासकर वास्तुक्षेत्र में मेरे योगदान के फलस्वरुप प्राचीन भारतीय वास्तुशास्त्र का नवीनतम व आधुनिक रुप, सरल वास्तु के नाम से देश-विदेश में विख्यात हुआ है। गौरतलब बात यह रही कि यह सभी उपलब्धियाँ मुझे इसी घर में रहते हुए, सन २००० से निरन्तर प्राप्त होती आ रही हैं, जिसके फलस्वरुप आज मेरे प्रतिष्ठान सी.जी.परिवार व सरल वास्तु का नाम संपूर्ण भारतवर्ष व विदेश में अच्छे तरीके से स्थापित हो चुका हैं व अपार मात्रा में मुझे मेरे काम के लिए प्रसिद्धि व आशीर्वाद स्वरुप प्रेम मिल रहा है।
इसका दूसरा पक्ष देखा जाए तो यदि उत्तर-पूवी दिशा किसी व्यक्तिविशेष की शुभ दिशाओं में से एक हैं तो ऐसी अवस्था में किसी शौचालय या स्नानगृह का इस दिशा में होना उचित नही कुछ एक ऐसी बाधायें आ सकती हैं, लेकिन इस कारण व्यक्ति या पारिवारिक सदस्य की ‘अकारण व असमय मृत्यु’ तो कदापि भी नहीं हो सकती है, इस स्थिति में सही उपाय तो यही होगा कि, शौचालय को पूरी तरह से हटाकर, उस जगह का उपयोग एक ‘स्टोर रुम’ की भाँति किया जाए। दूसरा तरीका यह भी हो सकता हैं कि हम ऐसे शौचालयों का इस्तेमाल या उपयोग पूर्णरुप से करना ही बंद कर दे। इस प्रकार के उपायों से हम घर में व्याप्त नकारात्मक ऊर्जाओं को नष्ट कर सकते हैं। नमक का इस्तेमाल जिस तरह खाने को लजीज बना देता है। उसी तरह नमक आपके जीवन को मजेदार बना सकता है। वास्तु विज्ञान के अनुसार नमक मे गजब शक्ति है जो न सिर्फ आपके घर को सकारात्मक ऊर्जा से भर देती है बल्कि आपके घर मे सुख समृद्धि बढ़ाने का काम करती है। इसके अलावा, हम ‘साधारण घरेलू नमक’ को रखकर या कोई ‘पौधा’ (मनीप्लांट) इत्यादि से, भी अपने शौचालयों व स्नानघरें की नकारात्मक ऊर्जा में कमी ला सकते हैं।
सबसे महत्त्वपूर्ण बात शौचालयों व स्नानघरों के दरवाजे इस्तेमाल न करने की अवस्था में हमेशा बंद ही रखे, जिससे कि शौचालयों में व्याप्त नकारात्मक ऊर्जा घर के दूसरे कमरों में फैलने न पाए।