किसी भी घर का सबसे पवित्र स्थान “पूजा कक्ष” या “प्रार्थना कक्ष” है। यह वह स्थान है जहाँ हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं और सुखी जीवन के लिए आशीर्वाद माँगते हैं। भारत में, पूजा कक्ष को घर का सबसे शुभ कोना माना जाता है, जहाँ सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है।
चूंकि यह स्थान सकारात्मक ऊर्जा के ख़ज़ाने के रूप में जाना जाता है, इसलिए यहां किसी भी तरह की नकारात्मकता घर की सुख–समृद्धि को नुकसान पहुंचा सकती है। पूजा घर में सकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह में आने वाली किसी भी बाधा को समझने के लिए, हमें पूजा कक्ष के वास्तु पर ध्यान देना चाहिए। वास्तु शास्त्र या वास्तु विज्ञान पूजा कक्ष व उसकी दिशा के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। वास्तु के अनुसार पूजा कक्ष ज्ञान और बुद्धिमत्ता के लिए “अंजना चक्र” और बेहतर स्वास्थ्य, परिवार के सदस्यों के बीच अच्छी बॉन्डिंग और शांतिपूर्ण जीवन के लिए “सहस्र चक्र” को ऊर्जावान बनाने में मदद करता है।
पूजा कक्ष के लिए वास्तु को कौन से कारक प्रभावित करते हैं?
वास्तु के अनुसार पूजा कक्ष में मूर्तियों का स्थान, पूजा स्थल की दिशा और पूजा कक्ष में रखी जाने वाली विभिन्न वस्तुएँ शामिल हैं। वास्तु दोष के कारण आने वाली प्रतिकूलता पूजा कक्ष में गलत वास्तु के कारण आती है, और इसे उचित वास्तु विज्ञान की मदद से हटाया जा सकता है। कॉस्मिक ऊर्जा में आने वाली बाधाएं और उसका नकारात्मक प्रवाह जीवन से जुड़ी समस्याओं जैसे स्वास्थ्य, धन, शिक्षा, करियर, नौकरी, व्यवसाय, विवाह, संबंध आदि समस्याओं पैदा कर सकता है। जीवन में इन परेशानियों को दूर करने के लिए, गुरुजी के द्वारा बताए गए सरल वास्तु सिद्धांतों का पालन करने की आवश्यकता है।
गुरुजी ने बताया कि आपके जीवन में आने वाली किसी भी प्रतिकूलता का प्रमुख कारण घर में असंतुलित कॉस्मिक ऊर्जा का होना है। जीवन में संतुलन और सद्भावना लाने के लिए, सरल वास्तु सिद्धांतों को अपनाया जा सकता है। इन सिद्धान्तों की प्रक्रिया के 3 चरण हैं जो निम्न इस प्रकार है:
- दिशाओं के साथ कॉस्मिक ऊर्जा से जुड़ें,
- संरचना के साथ कॉस्मिक ऊर्जा को संतुलित करें
- चक्रों के साथ कॉस्मिक ऊर्जा को चैनलाइज़ करें।
इस ऊर्जा प्रवाह को अवशोषित करके, व्यक्ति संपूर्ण सुख प्राप्त कर सकता है।
पूजा कक्ष के लिए वास्तु कैसे तय किया जा सकता है?
वास्तु शास्त्र के अनुसार सभी व्यक्तियों के लिए समान रूप से कोई एक अच्छी या बुरी दिशा नही हो सकती है। इसका कोई एक समान नियमों का सेट या ले–आउट नहीं होता जिसे सभी लोगो पर आंख बंद करके लागू कर दिया जाए। प्रत्येक व्यक्ति के पूजा कक्ष के लिए सही वास्तु तय करने के लिए, विस्तृत अध्ययन कर सही वास्तु योजना को तैयार करने की आवश्यकता होती है और यह मूलतः किसी व्यक्ति की जन्म–तिथि के द्वारा ही निर्धारित किया जा सकता है। 20 वर्षों के शोध और अध्ययन के बाद, गुरुजी सरल वास्तु के सिद्धान्तों के ज़रिए जीवन को बदलने वाले तथ्यों को समाज के कल्याण के लिए लाये। जो यह बताता है कि किसी भी व्यक्ति के लिए सही दिशा, दशा और वास्तु तय करने में उस व्यक्ति की जन्म तिथि महत्वपूर्ण कारक है।
कैसे एक घर पिता को अपार विकास और फल दे रहा है, लेकिन उसी समयकाल में, उसका बेटा अपने जीवन में कुछ भी हासिल करने में सक्षम नहीं होता है। यदि वास्तु सिद्धान्त सभी के लिए समान है, तो पिता और पुत्र अपने प्रयासों में समान परिणाम क्यों नहीं प्राप्त कर सकते हैं? इसका उत्तर उनकी जन्म की तारीख में निहित है। किसी भी व्यक्ति के लिए अनुकूल और प्रतिकूल दिशाएं जन्म की तारीख पर निर्भर करती हैं। पूजा कक्ष के लिए सरल वास्तु द्वारा बनावट को तैयार किया जाता है। पूजा कक्ष में कुछ बदलाव करने से, सरल वास्तु के उपयोग के माध्यम से आप अपने जीवन में बहुतायत में खुशियां और सौभाग्य ला सकते हैं।
सरल वास्तु प्रत्येक व्यक्ति के लिए अद्वितीय वास्तु समाधान पर जोर देता है लेकिन फिर भी पूजा कक्ष में किसी भी तरह के नकारात्मक प्रवाह को रोकने के लिए कुछ वास्तु उपायों का पालन किया जाना चाहिए। सरल वास्तु द्वारा दिये गए प्रभावकारी वास्तु समाधानों के अलावा नकली वास्तु विशेषज्ञों ने पूजा कक्ष के बारे में कई मिथक आम लोगो मे बना रखें हैं जिन्हें सरल वास्तु ख़ारिज करता है। इस प्रकार सरल वास्तु की मदद से व्यक्ति अपने जीवन में सामंजस्य, खुशी, सकारात्मकता और सफलता ला सकता है।
क्या आप जानते है?
सरल वास्तु सिद्धांतों को अपनाने के बाद आप 9 से 180 दिनों के भीतर अपनी जीवन–संबंधी समस्याओं को हल कर सकते हैं।