वास्तु शास्र, “स्थापत्यकला का विज्ञान’’

वास्तु शास्त्र यह विज्ञान प्राचीन भारतीय संस्कृति द्वारा हजारों साल पहले बहुत विस्तृत रूप से अध्ययन किया गया है और एक प्रभावशाली वैदिक विज्ञान है । वास्तु शास्त्र की उत्पत्ति मानवता के कल्याण की भावना तथा जीवन के औचित्य से अभिप्रेरित हुआ है । मूल शब्द वास का मतलब है “आवास, निर्वाह करना, ठहर जाना, निवास करना’’. वास्तु शास्त्र यह दिशा, ब्रम्हांडीय ऊर्जा का विज्ञान है और ब्रम्हांडीय ऊर्जा का मानवी जीवन पर कैसे प्रभाव पड़ता है यह स्पष्ट करती है । वास्तु शास्र मनुष्य जाति को सिखाती है कि परिस्थिति के साथ सामंजस्य से कैसे रहते हैं ।

घर हो या संयुक्त कार्यालय तथा उद्योग या संस्था जैसे कोई भी जगह हो उसे 8 दिशाएं होती है । चार अनुकूल दिशा और चार कोने । प्रत्येक दिशा का एक महत्त्व होता है । उदाहरण के लिए, मुख्य द्वार का स्थान उचित दिशा में होना यह सूचित करता है कि वहां रहनेवाले अथवा काम करनेवाले लोगों में स्वास्थ्य, संपत्ति, संवाद (रिश्ते) आदि के संदर्भ में निश्चित योग्यता है |.

दिशाएं

यहां कुल 8 दिशाएं होती है । हर एक का मध्यबिंदू 45 अंश से अलग होता है या दूसरे शब्दों में प्रत्येक दिशा 45 अंश से व्याप्त होती है ।
घड़ी की सुई की दिशा से दिशानिर्देश नीचे दिए हैं:

घड़ी की दिशा में निर्देश हैं:

1. North – Uttarā – उत्तर
2. North East – Aiśānī – ऐशानी
3. East – Pūrvā – पूर्वा
4. South East – Āgneyī – आग्नेयी
5. South – Dakṣhiṇā – दक्षिणा
6. South West – Nairṛṛtā – नैर्ॠता
7. West – Paścimā – पश्चिमा
8. North West – Vāyavyā – वायव्या

दिशाओं को खोजने के लिए दिशादर्शक (कंपास) का उपयोग कैसे करें?

  • दिशादर्शक को अपनी हथेली के मध्य में रखें जिससे दिशादर्शक सीधा रहेगा ।
  • दिशादर्शक को तब तक घुमाते रहो जब तक लाल सुई उत्तर दिशा की ओर इशारा करें ।